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 बड़ी कामयाबी: अंगूर की नई किस्म विकसित, सीडलेस होने के साथ फफूंद रोधी

पुणे, 13 जनवरी। कृषि वैज्ञानिकों ने सीडलेस अंगूर की एक नई किस्म विकसित करने में सफलता प्राप्त की है, जो फफूंद रोधी भी है। उपज के मामले में बेहतर इस अंगूर से जूस, जैम और रेड वाइन बनाई जा सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि नए किस्म के अंगूर की खेती से किसानों को ज्यादा आय हो सकती है। अंगूर की नई प्रजाति को एआरआई-516 नाम दिया गया है। अंगूर की दो किस्मों- काटावेरा व वीटिश विनिफेरा के मेल से यह तैयार की गई है। बीज रहित होने के साथ यह फफूंद रोधी है। नई किस्म के अंगूर की गुणवत्ता भी अच्छी है।

महाराष्ट्र नंबर एक

अंगूर उत्पादन में भारत दुनिया में 12 वें स्थान पर है। देश में कुल उपज का 78 प्रतिशत अंगूर खाने के लिए बाजार में बिक जाता है। 17 से 20 प्रतिशत उपज से किशमश-मुनक्का तैयार होता है। अंगूर से वाइन बनाई जाती है। सीमित मात्रा में जूस भी बनाया जाता है। देश के कुल अंगूर उत्पादन में महाराष्ट्र का योगदान 81 प्रतिशत से ज्यादा है।

5 राज्यों की जलवायु अनुकूल

अंगूर की नई किस्म आगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट और एमएसीएस के वैज्ञानिकों ने विकसित की है। इसकी उपज 110 से 120 दिन में तैयार हो जाती है। महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब और पश्चिम बंगाल की जलवायु इसके अनुकूल है।

विदेशी भी दीवाने हैं

भारत में उत्पादित अंगूर का स्वाद लजीज है। यही कारण है कि भारत से बड़ी मात्रा में अंगूर निर्यात होता है। विदेशों में भारतीय अंगूर के दीवाने इसका इंतजार करते हैं। विदेशी दुकानदारों का कहना है कि भारतीय अंगूर किसी भी किस्म का हो, हाथों हाथ बिक जाते हैं। दुकानदार ग्राहक का नहीं, बल्कि ग्राहक भारतीय अंगूर का इंतजार करते हैं।

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