उत्तर प्रदेश

शिशुओं की जान बचाने में एसबीएम के बाद जेजेएम को मिली अंतरराष्ट्रीय सराहना

नई दिल्ली/लखनऊ, 13 अक्टूबर। शिशुओं की जान बचाने में स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के बाद केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए आयाम गढ़ने में सफल हो रही है। ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की इस योजना को वैश्विक स्तर पर ख्याति और सराहना मिल रही है। स्वच्छ भारत अभियान से जहां हर साल तीन लाख से अधिक शिशुओं की जान बचाई जा रही है। वहीं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी इसका असर दिख रहा है।

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में शिशु मृत्यु दर में बड़ी गिरावट देखी जा रही है। वहीं, जल जीवन मिशन को लेकर नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकी प्रोफेसर माइकल क्रेमर का दावा है कि इससे बाल मृत्यु दर में बड़ी गिरावट देखी जा रही है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने जल जीवन मिशन की उल्लेखनीय प्रगति को सराहते हुए कहा था कि इसी तर्ज पर दुनिया के दूसरे पिछड़े देशों में भी योजनाएं लागू की जानी चाहिए।

2024 तक हर घर स्वच्छ जल पहुंचाना है जेजेएम का लक्ष्य

उत्तर प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जल शक्ति मंत्रालय ने ‘जल जीवन मिशन’ योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत मंत्रालय ने 2024 तक ग्रामीण इलाकों में सभी घरों को नल से पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की देखरेख में तेजी से योजनाओं को लागू करते हुए करीब 54 फीसदी घरों को स्वच्छ पेयजल योजना से जोड़ा गया। 2019 में जब इस मिशन की शुरुआत की गई थी तब देश की लगभग आधी ग्रामीण आबादी स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता से वंचित थी।

बीते 70 सालों में करीब साढ़े तीन करोड़ घरों को इस योजना का लाभ मिला, वहीं महज तीन साल में सात करोड़ से अधिक घर इस योजना से लाभान्वित हुए हैं। मंत्रालय का कहना है कि हालांकि, इस योजना को अकेले रखकर नहीं देखा जाना चाहिए। स्वच्छ भारत अभियान को भी इसी मिशन की सफलता में शामिल किया जाना चाहिए।

स्वच्छ भारत अभियान ने गढ़ी नए भारत की तस्वीर

दरअसल, 2014 में शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान की सफलता का साक्ष्य सबके सामने है। 2014 में नई सरकार के सत्ता में आने से पहले ग्रामीण स्वच्छता की स्थिति बेहद खराब थी। 260 बिलियन डॉलर की खराब स्वच्छता की वार्षिक वैश्विक लागत में से, अकेले भारत का हिस्सा 54 बिलियन डॉलर या भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत था। गंदगी के कारण हुई बीमारियों से मौत का आंकड़ा 1.5 लाख के करीब था। हालांकि, नई सरकार के स्वच्छ भारत अभियान ने तस्वीर बदलकर रख दी। स्वच्छ भारत मिशन की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार साल 2014 में देश में शौचालय की उपलब्धता महज 38.70 प्रतिशत थी, जबकि पांच वर्ष बाद अक्टूबर, 2019 तक ये 100 फीसदी हो गई है। एक आंकड़े के मुताबिक स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के कारण देश की 50 प्रतिशत आबादी सालाना 56 हजार रुपये स्वास्थ मद में बचा रही है।

डायरिया के मामलों में गिरावट

जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर की ओर से 2019 में किये गए अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादा से ज्यादा गांवों के ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त गांव घोषित होने से डायरिया के मामलों में काफी गिरावट आई है। 2013 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की हुई मृत्यु में 11 फीसदी मामले डायरिया के थे। 2019 में इन मामलों में 50 फीसदी तक की कमी आई है। इससे हर साल तीन लाख से अधिक बच्चों की जान बचाई जा रही है। महज आठ साल में करीब 11 करोड़ घरों में शौचालय बनाए गए। वहीं, लगभग छह लाख तीन हजार 175 गांवों को ओडीएफ प्रमाणित गांवों के रूप में घोषित किया गया।

यूपी में भी दिख रहा जल जीवन मिशन (जेजेएम) का असर

उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत तेजी से कार्य किए गए हैं। प्रदेश में 15 अगस्त 2019 से पहले महज पांच लाख 16 हजार 221 (1.94 प्रतिशत) परिवारों के पास फंक्शनल हाउस होल्ड कनेक्शन (एफएचटीसी) थे। वहीं, आज 49 लाख 75 हजार 160 घरों तक नल से शुद्ध पेयजल पहुंचाया जा रहा है। जेजेएम के तहत प्रदेश के 45 हजार से अधिक गांवों में हर घर जल का काम तेज गति से पूरा किया जा रहा है। बच्चों के भविष्य को संवारने और उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इस योजना से एक लाख से अधिक स्कूलों और करीब डेढ़ लाख आंगनबाड़ी केंद्रों को जोड़ा गया है। पानी की जांच के लिए करीब पांच लाख महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है, जो गांव-गांव जाकर पानी की शुद्धता की जांच कर रही हैं। जल जीवन मिशन के तहत सूखा प्रभावित क्षेत्रों, जल गुणवत्ता प्रभावित गांवों, आकांक्षी तथा जापानी इंसेफेलाइटिस, उग्र-एन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम से प्रभावित जिलों को प्राथमिकता पर रख कर काम किया जा रहा है। इससे शिशु मृत्यु दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

क्या कहा था प्रोफेसर माइकल क्रेमर ने

भारतीय अधिकारियों से जुलाई में मुलाकात के दौरान उन्हें संबोधित करते हुए प्रो. क्रेमर ने कहा कि उनके अध्ययन से एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकला है कि अगर परिवारों को पीने के लिए सुरक्षित पानी उपलब्ध करा दिया जाए तो लगभग 30 फीसदी शिशुओं की मृत्यु को कम किया जा सकता है। ऐसे में, ‘हर घर जल’ कार्यक्रम विशेष रूप से बच्चों में स्वास्थ्य मानकों को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

क्यों खास है प्रो. क्रेमर की रिसर्च रिपोर्ट

प्रो माइकल क्रेमर के शोधपत्र को शिकागो विश्वविद्यालय ने प्रकाशित किया है। इसमें कहा गया है कि बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए स्वच्छ जल लोगों तक पहुंचाना सबसे किफायती और प्रभावी तरीकों में से एक है। जल जीवन मिशन योजना भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। क्रेमर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार अगर अपने लक्ष्य को हासिल कर लेती है तो हर साल भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 1.36 लाख बच्चों की जान बचाई जा सकती है।

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