राष्ट्रीय

लोकसभा और विधानसभाओं में एससी-एसटी आरक्षण के मामले में संविधान बेंच 1 नवंबर को करेगी सुनवाई

नई दिल्ली, 7 सितंबर। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में एससी-एसटी समुदाय को दिए जाने वाले आरक्षण को दस साल से ज्यादा तक बढ़ाने को चुनौती देनेवाली याचिका पर 1 नवंबर को सुनवाई करेगी।

बुधवार को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिया है। संविधान बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। संविधान के अनुच्छेद 330 से 334 तक संसद और राज्य विधानसभाओं में एससी-एसटी समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान है। इसी प्रावधान के तहत एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रतिनिधियों का मनोनयन होता है। संविधान की शुरुआत में आरक्षण और मनोनय का प्रावधान 10 साल के लिए था। इसके तहत 2020 में आरक्षण और मनोनयन करने की समय सीमा बढ़ाई गई थी, जो 2030 तक चलेगा।

याचिकाओं में कहा गया है कि संशोधन कर आरक्षण की सीमा बढ़ाया जाना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को संविधान का जरूरी तत्व बताया है और आरक्षण की समय सीमा को बढ़ाकर याचिकाकर्ता के लोकतांत्रिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है। आरक्षण की समय सीमा को बढ़ाना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 02 सितंबर 2003 को इस मामले को पांच जजों की संविधान बेंच को रेफर कर दिया था।

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