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जो वस्तुयें हमें सुलभता से मिलती हैं ,हम उनके प्रति उदासीन हो जाते हैं : आरिफ मोहम्मद खान

ऋषिकेश, 09 अक्टूबर। केरल के राज्यपाल ने कहा कि जो वस्तुएं हमें सुलभता से मिलती हैं, हम उनके प्रति उदासीन हो जाते हैं। हमारी मातृ शक्ति मां, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में हमें मिली हैं, इसलिये हम उनका महत्व कम कर देते हैं।

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने यह विचार रविवार को यहां परमार्थ निकेतन में आयोजित दो दिवसीय ‘नारी संसद’ शक्ति महाकुम्भ के समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित महिलाओं और लोगों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

केरल के राज्यपाल ने कहा कि नारी संसद में कहा कि हमारी मातृ शक्ति मां, बहन, पत्नी और बेटी के महत्व कम कर देते हैं। उनके द्वारा किये गये कार्यों को हम भूल जाते हैं। शास्त्रों में बहुत ही सुन्दर शब्द है सुमिरन। हमें भी नारियों के विषय में सुमिरन करने और कराने की जरूरत है। उन्होंने परोपकार के महत्व की भी व्याख्या करते हुए कहा कि उपकार करना ही पुण्य है, और अत्याचार करना ही पाप है।

इस अवसर पर उन्होंने जयदेव की गीता का वर्णन करते हुए कहा कि शास्त्रों में भगवान श्रीकृष्ण को पूर्ण पुरुष कहा गया है, परन्तु जब वे एक बार यमुना जी के तट पर गये तो अन्धकार से वे डर गये तब वे राधा जी के पास गये अर्थात पूर्ण पुरुष को भी मातृ शक्ति के सहयोग की आवश्यकता पड़ी तो हम सब तो साधारण हैं। इसलिये मातृशक्ति के महत्व को स्वीकार करना होगा। हम कहते हैं महिला लक्ष्मी है, अब समय आ गया है कि हम स्वीकार करें कि लक्ष्मी महिला है, सरस्वती महिला है और इसे स्वीकार करने में किसी को भी कठिनाई नहीं होनी चाहिये।

उन्होंने कहा कि महिलाओं को मासिक धर्म होना एक शारीरिक बात है, परन्तु ऐसी जो भी समस्याएं हैं। वह समाज की समस्याएं हैं। अतः महिलाओं की समस्याओं को लेकर इन्हें नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता बल्कि यह तो पूरे परिवार और समाज की समस्या है। महिलाओं ने तो वेदों की रचना की है लेकिन समय के साथ महिलाओं को चार दीवारी के अन्दर बंद करके रखा गया। पुरुषों को अपना भला, आने वाली पीढ़ियों का भला और समाज का भला करने के लिये महिलाओं की समस्याओं को स्वीकारना और समाधान करना होगा।

केरल के राज्यपाल ने शिक्षा के महत्व को बारे में कहा कि लड़कियों को भी लड़कों की तरह शिक्षित किया जाए तो वह भी हर कार्य कर सकती हैं। लड़के और लड़कियों में जो भी अन्तर है, वह शिक्षा के कारण है। हमें अपने घरों में भी बेटी और बेटों को समान शिक्षा देनी होगी। उन्होंने कहा कि नारी के उत्पीड़न में नारी का ही बहुत बड़ा हाथ है। हमारा रवैया बेटी और बहू के साथ समान होना चाहिये। उन्होंने कहा कि मैंने अपने बेटे के निकाह नामे में कुछ शर्तें लिखवायी थीं, तब लोगों ने कहा कि यह आप अपने खिलाफ ही लिख रहे हैं लेकिन मैं अपनी बहू को अपनी बेटी ही मानता हूं।

उन्होंने इस अवसर पर भक्ति कवियों द्वारा लिखित रचनाओं का वर्णन करते हुए कहा कि उन रचनाओं में नारी शक्ति की अद्भुत व्याख्या की गयी है। महिलाओं में किसी भी प्रकार की क्षमता की कमी नहीं है। आज हमारी बेटियां भी फाइटर प्लेन चला रही है। शास्त्रों में उल्लेख है कि अपनी आत्मा और अपने आप को ऊपर उठने के लिये प्रयत्न करें। जीवन का उद्देश्य सुख की प्राप्ति नहीं बल्कि ज्ञान की प्राप्ति है। जिस दिन ज्ञान प्राप्त हो जायेगा, उस दिन आप विभेद करना भूल जाएंगे। मैं कहां पैदा हुआ हूं और किस रूप में पैदा हुआ हूं, यह मेरे हाथ में नहीं है लेकिन पुरुषार्थ करना हमारे हाथ में हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि नारियों को सामना नहीं सम्मान चाहिये। उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने के लिये एक सुरक्षित वातावरण चाहिये।

डा. साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा यदि हम वास्तव में एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें स्वीकार करना होगा कि हम जिनकी पूजा करते हैं, उन्हीं बेटियों को यह भी बताते हैं कि मां काली की तरह नहीं बल्कि गौरवर्ण की तरह होना चाहिये। हम बेटियों को फेयर बनने की शिक्षा देते हैं तब हम कैसे सशक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं। हम सम्मेलनों में महिला सशक्तिकरण और समानता के बारे में बात करते हैं परन्तु इसे विचारों और सोच में स्थान देना होगा। तभी हमारे ये कार्यक्रम सफल हो सकते हैं। समानता का मतलब लड़कियों को लड़कों के जैसे बात करना, कपड़े पहनना नहीं है, बल्कि जिस प्रकार धरती पर गुलाब और गेंदा अलग-अलग हैं। उसी प्रकार हमारे समाज में विविधता है उस विविधता को स्वीकार करते हुए समानता को स्वीकार करना होगा।

पर्यावरणविद् डा वंदना शिवा ने कहा कि भारत की संस्कृति विविधता में एकता की संस्कृति हैं और परमार्थ निकेतन में स्पष्टता से उस संस्कृति के दर्शन हो रहे हैं। हर संस्कृति ने नदियों को मां नहीं कहा गया परन्तु भारत ने सभी नदियों को मां का दर्जा दिया है। नदियों का पानी केवल पानी नहीं है बल्कि उसमें शक्ति है।

इस अवसर पर उन्होंने मां भागीरथी जी का पृथ्वी पर अवतरण के प्रसंग को साझा करते हुए कहा कि हमारी नदियां, जंगल और जल हमारी दिव्य संपदा हैं। उन्होंने बताया कि 1050 स्थानों पर बीज संरक्षण अभियान शुरू है और इन केन्द्रों से विलुप्त हो रहे बीजों को बचाने का कार्य किया जा रहा है। जैविक खेती, नीम के पौधे और जैविक नाशकों के विषय में जानकारी दी।

डा. शिवा ने कहा कि प्रकृति के साथ काम करना ही महिला शक्ति है और यही आज की जरूरत है। चिपको आन्दोलन का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय आन्दोलनकर्ता महिलाओं ने कहा कि जो प्रकृति में शक्ति है, जो बह्मण्ड में शक्ति है वही हम सभी में है। प्रकृति का स्वास्थ्य और हमारा स्वास्थ्य जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा भूले-बिसरे अनाज में पोषण है इसलिये हमें इनको पुनः स्वीकार करना होगा। मुझे परमार्थ निकेतन में आकर स्वामी जी और साध्वी के सान्निध्य में अत्यंत प्रसन्नता होती है।

मेयर ऋषिकेश अनीता ममगांई ने कहा कि हमारी गंगा मां और भारत माता मातृशक्ति का प्रतीक है। नारी संसद के आयोजन हेतु उन्होंने पूज्य स्वामी जी को धन्यवाद देते हुए कहा कि परमार्थ निकेतन द्वारा वर्षों से ऋषिकेश और आस-पास की स्लम एरिया में जाकर नारियों और बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए अद्भुत कार्य किये जा रहे हैं जो की अनुकरणीय हैं और यही वास्तव में नारी संसद का प्रतीक भी है।

कार्यशाला में सहभाग करने वाले प्रतिभागियों ने परमार्थ निकेतन में आयोजित सभी आध्यात्मिक कार्यक्रमों और गंगा जी की आरती में सहभाग कर आनन्द लिया। यह कार्यक्रम परमार्थ निकेतन और माता ललिता देवी ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में परमार्थ निकेतन में आयोजित हुआ।

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