जी-20 सम्मेलन में विश्वविद्यालय भी उत्साह से भागीदारी करें : आनंदीबेन पटेल
वाराणसी, 31 दिसम्बर। प्रदेश की राज्यपाल और कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने जी-20 सम्मेलन में विश्वविद्यालयों को इसमें उत्साह से भागीदारी पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में भाग लेने के लिए विश्वविद्यालय ऐसे मेधावी विद्यार्थियों का चयन करें, जो विदेशी भाषा के जानकार हों। ये छात्र जी-20 देशो के प्रतिनिधियों से संवाद करके उन्हें देश की विविधता,एकता,विश्वविद्यालय के नवाचारों, स्टार्टअप की जानकारी देने के साथ एक भारत श्रेष्ठ भारत का संदेश दें।
राज्यपाल शनिवार को सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 40वें दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित कर रही थी। समारोह की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल ने बताया कि भारत में जी-20 देशों की बैठके मानवता के कल्याण के लिए ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम‘‘ की थीम पर आधारित हैं। उत्तर प्रदेश के चार शहरों आगरा, वाराणसी, लखनऊ, ग्रेटर नोयडा बैठकें आयोजित हो रही हैं।
समारोह में विश्वविद्यालय के विभिन्न परीक्षाओं में सर्वोच्च अंक पाने 31 मेधावी विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक देने के बाद राज्यपाल ने उनका जमकर उत्साह वर्धन किया। उन्होंने संस्कृत भाषा को दुर्लभ ज्ञान-विज्ञान की जानकारी का श्रोत बताते हुए कहा कि संस्कृत को जन-जन की भाषा बनाने के तरफ मजबूत प्रयास होना चाहिये।
उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत को विशेष स्थान दिया गया है। समारोह में राज्यपाल ने वैश्विक स्तर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत के बढ़ते कद और देश में प्रेरणादायी आयोजनों और वर्ष 2022 की खास उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि इस वर्ष भारत में अगस्त माह में ‘‘हर घर तिरंगा अभियान‘‘ में 06 करोड़ लोगों ने सेल्फी ली। इस अभियान में जनता के देश प्रेम ने विश्व को विस्मित किया। उन्होंने कहा कि खुले में शौच से मुक्ति, टी0बी0, कुपोषण, पोलियों के विरूद्ध अभियान चलाकर इन समस्याओं से उबरते भारत ने दुनिया भर को प्रभावित किया है। ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ भारत का इंटरनेशलन सोलर एलायंस, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, कोरोना काल में भारत निर्मित दवाओं के विश्वस्तर पर उपयोग आदि के साथ वाराणसी में ‘‘एक भारत श्रेष्ठ भारत‘‘ की अवधारणा पर आयोजित ‘‘काशी-तमिल संगमम्‘‘ का खास तौर पर उल्लेख किया। उन्होंने विश्व में कोरोना के पुनः बढ़ते प्रसार को देखते हुए लोगों से सावधानियाँ और ऐहतियात बरतने का आह्वान भी किया।
राज्यपाल ने गंगा नदी में प्रदूषण को कम करने में केन्द्र सरकार द्वारा ‘‘नमामि गंगे परियोजना‘‘ के माध्यम से किए गए प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत की इस पहल को दुनिया भर में सराहना मिल रही है और इसेे दुनिया की शीर्ष दस पहलों में शामिल किया गया है।
समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा नहीं अपितु संस्कृति है, सभी भारतीयों के लिए एक ऊर्जा का श्रोत है। संस्कृत के बिना भारत का ज्ञान नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि भारत की एकता का सबसे बड़ा कारण है संस्कृत। और यह ज्ञान कि भाषा देश के भीतर सबसे मजबूत बंधन बना सकती है। यह एक सार्वभौमिक अनुभव है।
उन्होंने अपने पुराने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि जब वे महाराष्ट्र नैशनल ला कॉलेज के कुलपति थे । तब उन्होंने न्याय शास्त्र और मीमांसा में नये कोर्स चलाये थे। उन्होंने 1949 के संविधान सभा का एक पत्र का भी जिक्र किया जो उनको मिला जिसमें डॉ अम्बेडकर के साथ कई सदस्यों ने संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने की बात उठाई थी। उन्होंने कहा कि संस्कृत बहुत ही विस्तृतता समेटे हुए है जिसमें किसी भी विचार, साहित्य तथा विज्ञान को प्रस्तुत करने की जबरदस्त योग्यता है।
समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत कर विश्वविद्यालय के विकास यात्रा को बताया। इसके पहले दीक्षान्त समारोह की शुरूआत शैक्षणिक शिष्टयात्रा और राष्ट्रगान से हुई। समारोह का संचालन प्रो. हरि प्रसाद अधिकारी और धन्यवाद ज्ञापन रजिस्ट्रार केशलाल ने दिया।