राष्ट्रीय शिक्षानीति का प्रारूप आदर्शात्मक : प्रो एसएन चौधरी
प्रयागराज, 09 नवम्बर। राष्ट्रीय शिक्षानीति का प्रारूप आदर्शात्मक है। यह हमारे व्यापक जननांकीय परिदृश्य के अनुरूप निर्मित नहीं है। भारत में स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात बिना किसी पूर्व नियोजन के सामाजिक मांग और राजनीतिक दबाव के कारण शैक्षणिक संस्थाओं और पाठ्यक्रम की संख्याएं निरंतर बढ़ती रही हैं। परन्तु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से समझौता किया गया।
उक्त विचार मुख्य वक्ता आईसीएसएसआर, नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्येता प्रो एस एन चौधरी ने ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में बुधवार को महाविद्यालय में संस्थापित भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय के उपक्रम ‘संकाय विकास केंद्र’ एवं टीएनबी महाविद्यालय, भागलपुर के संयुक्त तत्वावधान में ‘शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में उभरती प्रवृत्तियां’ विषयक सात दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किया।
प्रो. चौधरी ने कहा कि वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था में प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा में कोई अन्तर्सम्बन्ध नहीं है। प्राथमिक शिक्षा के गुणवत्ताविहीन होने पर उच्चशिक्षा कभी गुणवत्तापूर्ण नहीं होगी। शिक्षा के निजीकरण द्वारा हम सामाजिक समावेशन के स्थान पर सामाजिक अपवर्जन कर रहे हैं। आज भी लगभग 99 प्रतिशत जनता नौकरी के लिए ही शिक्षा प्राप्त करती है। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षण बेहतर व्यवस्था सिद्ध हो सकती है।
महाविद्यालय के प्राचार्य और संकाय विकास केंद्र के समन्वयक प्रो.आनंद शंकर सिंह ने कहा कि हर कालखण्ड अपने युग धर्म के अनुकूल तकनीकों का स्वीकरण करता है। वर्तमान में शैक्षणिक जगत पीढ़ियों के संक्रमण कालीन दौर में है। इस कालखण्ड में सभी शिक्षकों के लिए नवीकृत तकनीकों का अनुप्रयोग आवश्यक एवं चुनौतीपूर्ण है। ई-लर्निंग के आयाम अत्यन्त वृहद हैं। ई-लर्निंग या डिजिटल तकनीक शिक्षा के दैशिक कालिक प्रसार का महत्वपूर्ण उपकरण है।
टीएनबी महाविद्यालय, भागलपुर के प्राचार्य प्रो एस के चौधरी ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय शिक्षानीति 2020 में उल्लिखित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रावधान को डिजिटल तकनीक ही पूर्णता को प्राप्त कराने में सक्षम है। एमयूआईटी, लखनऊ के पूर्व कुलपति प्रो एच.के सिंह ने कहा सरकार द्वारा प्रवर्तित राष्ट्रीय शिक्षानीति 2020 और आत्मनिर्भर भारत अभियान ये दोनों कार्यक्रम परस्पर भिन्न न होकर नितांत पूरक हैं। इनकी सफलता इनके क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी। आज शैक्षणिक क्षेत्र में ‘एआरईए’ प्रविधि अर्थात एकेडमिक्स, रिसर्च, एक्सपेंशन एण्ड एडमिनिस्ट्रेशन के समुचित समन्वय की आवश्यकता है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय, संघटक महाविद्यालयों के शिक्षकों, विद्वजनों, शोध छात्रों और देश देशांतर के विविध राज्यों के प्रतिभागियों ने सहभागिता की। संचालन सह संयोजक डॉ. शिवजी वर्मा और धन्यवाद ज्ञापन सहसंयोजक डॉ. जमील अहमद ने किया।