उत्तर प्रदेश

काशी क्रान्तिकारियों का मानो घर ही था : दयाशंकर मिश्र

-काशी और संस्कृत के लोगों का स्वतंन्त्रता आंदोलन में बहुत योगदान है

-राज्यमंत्री ने स्वतंत्रता आंदोलन में श्रमणों और संस्कृत विद्वानों का योगदान विषयक गोष्ठी में लिया भाग

वाराणसी,12 अगस्त। आजादी के अमृत महोत्सव और संस्कृत सप्ताह में शुक्रवार को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता आंदोलन में श्रमणों और संस्कृत विद्वानों का योगदान विषयक एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि शामिल प्रदेश के आयुष मंत्री स्वतंत्र प्रभार डॉ दयाशंकर मिश्र ’दयालु’ ने कहा कि ंकाशी चार जैन तीर्थंकरों का जन्म स्थान है। काशी, धर्म संस्कृति और आध्यात्म की राजधानी है। काशी क्रान्तिकारियों का मानो घर ही था। काशी और संस्कृत के लोगों का स्वतंन्त्रता आंदोलन में बहुत योगदान है।

राज्यमंत्री ने कहा कि संस्कृत से ही संस्कृति और परम्परा की रक्षा हो सकती है। इसीलिए डॉ सम्पूर्णानन्द ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना की। ऐसे स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले लोगों को किसी जाति या धर्म विशेष में नहीं बांधा जा सकता। राज्यमंत्री ने कहा कि आज आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हर घर तिरंगा फहराते हुए हमें उन क्रान्तिकारियों को याद करने और उनकी प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की आवश्यकता है।

गोष्ठी में राज्यमंत्री ने विश्वविद्यालय के योग साधना केन्द्र सभागार के जीर्णोद्वार एवं आधुनिकीकरण कराने के लिये हर सम्भव सहयोग देने का एलान भी किया। इस सम्बंध मे कुलपति से शीघ्र आगणन प्रस्तुत करने का आग्रह भी किया। मुख्य वक्ता पूर्व जैन दर्शन विभागाध्यक्ष प्रो. फूलचंद जैन ने कहा कि भारतीय संस्कृति में दो परम्पराओं का संगम है। एक है वैदिक परम्परा और दूसरी है श्रमण परम्परा। हमारे देश को आजादी दिलाने में हर क्षेत्र के लोगों ने समर्पण, सहयोग और बलिदान दिया है। जैन परम्परा से सम्बद्ध और इसी सम्पूर्णानन्द संस्कृत की शाखा स्यावाद महाविद्यालय के छात्र रतन पहाड़ी ने स्वतंत्रता आंदोलन में जेल की यातनाएं सही हैं । उन्होंने कहा कि संस्कृत के छात्रों के हाथ में शस्त्र और शास्त्र दोनों होते थे । ताकि शास्त्रीय परम्परा और देश दोनों की रक्षा हो सके।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत और श्रमण परम्परा के लोगों का स्वतंन्त्रता आंदोलन में बहुत योगदान है। लेखन और शास्त्रों के अध्यापन के माध्यम से भी इन विद्वानों ने योगदान दिया है। चन्द्रशेखर आजाद जो कि संस्कृत के विद्यार्थी थे। जिनका स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका रही।

इसके अतिरिक्त श्रमण विद्या संकाय के संस्थापक और संकायाध्यक्ष प्रोफेसर जगन्नाथ उपाध्याय का योगदान अतुलनीय है। बौद्ध दर्शन हमें बताता है कि अतिवाद से बचना चाहिए। स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले बहुत से लोग ऐसे हैं जो गुमनाम रहे हैं और हमें चाहिए कि ऐसे लोगों के योगदान को समाज के सामने लाएं।

इस अवसर पर डॉ दयानिधि मिश्र की पुस्तक गांधी प्रसंग का लोकार्पण किया गया। विषय का उपस्थापन तुलनात्मक धर्म दर्शन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हरि प्रसाद अधिकारी ने किया। अतिथियों का स्वागत छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष प्रोफेसर हरिशंकर पांडेय,संचालन श्रमण विद्या संकायाध्यक्ष प्रोफेसर रमेश प्रसाद और धन्यवाद ज्ञापन वेदान्त विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने किया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker