तानसेन समारोह : सुर सम्राट की जन्मस्थली बेहट में बही सुरों की रसधारा
ग्वालियर, 23 दिसंबर । वार्षिक तानसेन समारोह में संगीत सम्राट की जन्मस्थली बेहट में सजी नौंवी सभा में सुरों की रसधारा में श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। संगीत कलाकारों ने ऐसा झूम के गाया-बजाया कि रसिक सुध-बुध खो बैठे।
तानसेन समारोह के तहत यह सभा बेहट में शुक्रवार को भगवान भोले के मंदिर और झिलमिल नदी के समीप स्थित ध्रुपद केन्द्र परिसर में सजी। यह वही जगह थी, जहां संगीत सम्राट का बचपन संगीत साधना और बकरियां चराते हुए बीता था। लोक धारणा है कि तानसेन की तान से ही निर्जन में बना भगवान शिव का मंदिर तिरछा हो गया था। यह भी किंवदंती है कि 10 वर्षीय बेजुबान बालक तन्ना उर्फ तनसुख भगवान भोले का वरदान पाकर संगीत सम्राट तानसेन बन गया। समारोह की प्रातःकालीन संगीत सभा में जिला पंचायत अध्यक्ष दुर्गेश कुंअर सिंह जाटव सहित अन्य जनप्रतिनिधि एवं संभाग आयुक्त दीपक सिंह ने सपत्नीक स्वर लहरियों का आनंद उठाया। कार्यक्रम में उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे, क्षेत्रीय एसडीएम पुष्पा पुषाम व जनपद पंचायत सीईओ राजीव मिश्रा सहित अन्य अधिकारी एवं बड़ी संख्या में क्षेत्रीय ग्रामों एवं ग्वालियर व अन्य शहरों से आए रसिकों ने इस सभा का आनंद लिया।
ध्रुपद गायन से हुई सभा की शुरूआत
तानसेन की देहरी पर संगीत सभा की शुरुआत पारंपरिक ढंग से ध्रुपद केन्द्र बेहट के ध्रुपद गायन से हुई। यहां के बच्चों ने राग “अहीर भैरव” में ध्रुपद रचना प्रस्तुत की। ताल-चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे “चलो सखी ब्रजराज”। इसके बाद सूल ताल में बंदिश “दुर्गेश भवानी दयानी” का सुमधुर गायन किया। इस प्रस्तुति पर ध्रुपद केन्द्र के बच्चों को रसिकों की भरपूर सराहना मिली। पखावज पर संजय पंत आगले ने कसी हुई संगत की।
“सजन की सांवरी सूरत….”
चंदोगढ़ से पधारे प्रख्यात गायक प्रो. हरविंदर सिंह ने जब सुर सम्राट तानसेन की दहलीज पर राग “बहादुरी तोड़ी” में तीन ताल में पिरोकर छोटा ख्याल ” सजन की सांवरी सूरत” को बड़े भावपूर्ण अंदाज में गाय, तो गुणीय रसिक विरहरस में डूब गए। उन्होंने इसी राग में अपने गायन का आगाज़ किया और मंत्रमुग्ध करने वाली अलापचारी के साथ एक ताल में निबद्ध बंदिश “महादेव देवन पति पारवति पति” का गायन कर गान तानसेन के आराध्य भगवान भोले के श्रीचरणों में स्वरांजलि अर्पित की। भैरवी में रसभीनी ठुमरी “वन वन धुन सुन” गाकर उन्होंने अपने गायन को विराम दिया। प्रो हरविंदर ग्वालियर एवं आगरा घराने की गायकी में सिद्धहस्त हैं। उनके गायन में मनोज पाटीदार ने तबले पर और धर्मनारायण मिश्र ने हारमोनियम पर दिलकश संगत की।
तबले की जुगलबंदी से गूंजी बेहट की फिज़ा
सभा में दूसरी प्रस्तुति में तबला वादन की जुगलबंदी हुई। ग्वालियर के उदयीमान युवा तबलाकार विनय बिन्दे एवं प्रणव पराड़कर के तबला वादन से मनोरम अमराई और झिलमिल नदी का शांत किनारा संगीतमय हो गया। सुप्रसिद्ध तबला वादक स्व पण्डित रामचन्द्र तैलंग से दोनों कलाकारों ने गुरु-शिष्य परंपरा के तहत तबला वादन के हुनर सीखे हैं। इन्होंने अपने वादन के लिये ताल-तीन ताल का चयन किया, जिसमें कायदा व परन प्रस्तुत की। लग्गी बड़ी व सवाल जवाब तथा विभिन्न घरानों की बंदिशों की प्रस्तुति सुन रसिक मंत्रमुग्ध हो गए। जुगलबंदी में सारंगी पर उस्ताद हमीद खां और हारमोनियम पर नवीन कौशल ने नफासत भरी संगत की।