राष्ट्रीय

धर्म परिवर्तन कर चुके अनूसूचित जाति के लोगों की आरक्षण की मांग गलत: मिलिंद परांडे

मुंबई, 3 नवंबर । विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा कि धर्म परिवर्तन कर चुके अनुसूचित समाज के लोगों की आरक्षण की मांग गलत है। यह मांग न केवल संविधान विरोधी और राष्ट्र विरोधी है, अपितु अनुसूचित जाति के अधिकारों पर खुला डाका डालने जैसा है। विश्व हिंदू परिषद इसकी पोल खोलने के लिए जनजागरण करेगी।

मिलिंद परांडे मुंबई में गुरुवारों को पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मिशनरी व मौलवी बार-बार यही दोहराते हैं कि उनके मजहब में जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है और उनका मजहब स्वीकार करने के बाद कोई पिछड़ा नहीं रह जाता है। इसके बावजूद जब वे धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों के लिए बार-बार आरक्षण की मांग करते हैं तो न केवल उनका समानता का दावा खोखला सिद्ध होता है अपितु, उनके गलत इरादों का भी पर्दाफाश होता है। उनका उद्देश्य न्याय दिलाना नहीं अपितु धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज करना है। यह अनुचित मांग न केवल सामाजिक न्याय अपितु संविधान की मूल भावना के विपरीत किया गया एक षड्यंत्र है।

परांडे ने कहा कि 1932 में पूना पैक्ट करते समय डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण पर सहमति व्यक्त की थी। दुर्भाग्य से 1936 से ही मिशनरी और मौलवी मतांतरित अनुसूचित समाज के लिए आरक्षण की मांग सडक़ से लेकर संसद तक निरंतर उठाते रहे हैं। वर्ष 1936 में महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर ने इस मांग को अनुचित ठहराया था। संविधान सभा में भी जब इस मांग को पुन: उठाया गया तो संविधान निर्माता डॉक्टर अंबेडकर ने इसे देश विरोधी सिद्ध करते हुए ठुकरा दिया था। स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू और स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने भी इस मांग को अनुचित करार दिया था। उन्होंने कहा कि इसी मांग को लेकर वर्ष 1995 में दिल्ली में एक 10 दिवसीय धरने का आयोजन मिशनरियों ने किया गया था जिसमें सामाजिक समानता और सेवा की ध्वज वाहक माने जाने वाली स्वर्गीय मदर टेरेसा ने भाग लिया था। विहिप नेता ने आरोप लगाया कि बार-बार ठुकराने की बावजूद उनकी निरंतरता यह सिद्ध करती है कि उनके पीछे धर्मांतरण करने वाली अंतरराष्ट्रीय शक्तियां काम कर रही हैं।

मिलिंद परांडे ने बताया कि संविधान सभा व संसद में ठुकराने पर वे न्यायपालिका में भी जाते रहे हैं और न्यायपालिका भी इनकी अनुचित मांग को ठुकराते रही है। 1985 में “सुसाइ व अन्य विरुद्ध भारत सरकार” मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि मतांतरित अनुसूचित जाति को आरक्षण की मांग संविधान की मूल भावना के विपरीत है। इसके बावजूद 2004 में एक बार फिर से न्यायपालिका में गए, जो मामला अभी तक लंबित है। परांडे ने चेतावनी दी कि अगर इस नाजायज मांग को स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे अवैध धर्मांतरण की गतिविधियां तीव्र हो जाएंगी और “छद्म ईसाईयत” खुलकर सामने आएंगे। विहिप इस राष्ट्र विरोधी मांग के विरोध में एक राष्ट्रव्यापी जनजागरण अभियान चलाएगा।

वाल्मीकि महासभा के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश पवन कुमार ने ईसाई मिशनरियों और मौलवियों को चेतावनी देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति के अधिकारों पर डाका डालने का उनका प्रयास सफल नहीं हो पाएगा। अनुसूचित समाज किसी भी स्थिति में उनके षडयंत्रों को सफल नहीं होने देगा।

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