उत्तर प्रदेश

हाईकोर्ट ने अनुकम्पा नियुक्ति की मांग कर रहे दत्तक पुत्र को नहीं दी राहत, याचिका खारिज

प्रयागराज, 12 अगस्त। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 23 वर्षों से अनुकम्पा नियुक्ति की मांग कर रहे एक दत्तक पुत्र को राहत देने से मना कर दिया है। कहा कि याची ने जिस वर्ष नियुक्ति की मांग की थी, तत्समय की मृतक आश्रित नियमावली में दत्तक पुत्र को रोजगार दिए जाने का अधिकार शामिल नहीं था। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि नियमावली के अंतर्गत एक सीमित समय सीमा में ही आवेदन किया जा सकता है।

यह आदेश न्यायमूर्ति सौरव श्याम शमशेरी ने जनपद जौनपुर के संजय कुमार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची को वर्ष 1990 में राज्य सरकार के कर्मचारी राम अचल सिंह द्वारा पुत्र के रूप में गोद लिया गया था। पिता की 1995 में मृत्यु के पश्चात याची ने चार वर्ष बाद विभाग के समक्ष नौकरी के लिए आवेदन दिया था। 2003 में विभाग ने संजय के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि दत्तक पुत्र को मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी नहीं दी जा सकती है। उक्त आदेश को इस याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी।

अदालत ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत सरकार बनाम पी वेंकटेश एवं सेंट्रल कोलफील्ड बनाम पार्डन ऑरोन केस में प्रतिपादित विधि सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति का उद्देश्य विपदाग्रस्त परिवार को तत्काल आर्थिक राहत प्रदान कर संकट से उबारना होता है। अनुकम्पा रोजगार का अर्थ यह नहीं कि भविष्य में इसकी मांग कभी भी कर ली जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि याची ने अपने पिता की मृत्यु के 4 वर्ष बाद नौकरी का दावा किया था, इसलिए स्पष्ट है कि याची को तत्क्षण रोजगार की आवश्यकता नहीं थी।

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