बिजली…जाती हूँ मैं… (व्यंग्य रचना)
सुनील कुमार महला,
पिछले कुछ दिनों से तोताराम जी का दिल बागम-बाग हैं। वे बहुत खुश हैं। अजी ! खुशी का कारण हैं बिजली के कट। कपड़े सूख रहे हैं झट। बिजली तो है नहीं।अब मई के महीने में ही सावन आ गया है। वो क्या है कि तोताराम जी के बच्चे आजकल बिजली के तारों पर झूलते हैं। देखिए बिजली न होने के कितने मजे हैं। सारे बच्चे झूलों पर सजे हैं। गृहणियां खुश हैं। पहले कपड़ें सुखाने की दिक्कत थी, बिजली न आने से यह दिक्कत हल हो गई है। विकास हो रहा है। गज़ब का विकास है। आदमीजात को आजकल नई नई अनुभूतियां हो रही हैं। ऐसे लग रहा है कि आदमी अब लोकतंत्र के बजाय राजतंत्र में जी रहा है। राजाओं की तरह आज घर घर में हैंडमेड पंखा झला जा रहा है। हरेक आदमी स्वयं को राजा सरीखा महसूस कर रहा है। पहले राजा के सिंहासन के दोनों ओर दासियां पंखा झलती थी। आजकल मनुष्य के दोनों हाथ पंखा झल रहे हैं।आदमी को पंखा झलने का रोजगार मिल गया है। जितनी लाइट कट रही है, देश को उतना ही रोजगार मिल रहा है। बेरोजगारी दूर हो गई है। पंखा झलने में सभी व्यस्त हो गये हैं। आदमी का व्यस्त होना जरूरी है। पंखा झलने में व्यस्तता है। आदमी आजकल मक्खी नहीं मार रहा है।देश में काम ही काम है। सभी हाथ व्यस्त हैं।हरेक हाथ को काम है। देखा आपने बिजली कट के साथ ही सभी को काम मिल गया। लोग काम कर रहे हैं तो स्वस्थ भी हो रहे हैं। स्वस्थ रहने के लिए मूवमेंट जरूरी है और पंखा झलने से हाथों का मूवमेंट तो हो ही रहा है जी। अब बिजली कट के साथ ही देश की लगभग लगभग स्वास्थ्य समस्याएं हल हो गई हैं। बिजली नहीं है तो अच्छा है। लोगों की आंखें खराब नहीं हो रही हैं। टीवी,मोबाइल, कम्प्यूटर जो बंद हैं। सरकार को लोगों की आंखों का ,लोगों के स्वास्थ्य का बड़ा ख्याल है। बिजली कट के साथ ही छोटे दुकानदारों में खुशी का माहौल है। मिठाइयों पर मिठाईयां बांटी जा रही हैं। पहले उनके कुटीर उद्योग बंद हो गये थे। आजकल दुबारा खुल गए हैं। पंखा झलने का कुटीर उधोग तो अपने परवान पर है आजकल। बिजली कप के साथ ही मॉस्किटो क्वॉइल उधोग खूब पनप रहा है। बिजली ने तो मॉस्किटो क्वॉइल उधोग का भट्ठा ही बिठा दिया था, कोई क्वॉइल स्वाइल खरीदता तक नहीं था। बिजली कटौती से सरकार निरंतर वाहवाही लूट रही है। मॉस्किटो क्वाइल उधोग, पंखा उधोग सरकार के गुण गा रहे हैं आजकल। पहले बिजली आने से लोग आलसी और निकम्मे हो चले थे, आजकल बिजली नहीं आने से एकदम एक्टिव हो गये हैं। गज़ब की स्फूर्ति है, लोगों में। आलस्य नाम की तो कोई चीज ही नहीं है। बिजली नहीं होने के कारण बाहर की ठंडी हवा खाने के लिए अलसुबह ही घूमने निकल जाते हैं। सैर-सपाटे को बढ़ावा मिल रहा है। सरकार को लोगों की बहुत ज्यादा चिंता है। सरकार अब चिंता में नहीं मरे जा रही। सरकार आजकल टेंशन फ्री है। सरकार को दम तोड़ते फॉर्मेसी उधोग की गहरी चिंता है, इसीलिए बिजली नहीं छोड़ी जा रही है। बिजली नहीं छोड़ी जायेगी तो मच्छरों को पिकनिक मनाने का मौका मिलेगा और जब मच्छर घरों में, दुकानों में पिकनिक मनायेंगे तो लोग बीमार होंगे।अजी ! लोग बीमार होंगे तभी तो फॉर्मेसी उधोग गति पकड़ेगा। डॉक्टरों को काम मिलेगा। अस्पताल धड़ल्ले से चलेंगे। सरकार अस्पतालों, डॉक्टरों, फॉर्मेसी वालों सभी की पीड़ाओं को बराबर समझती है, बखूबी समझती है जी। बिजली नहीं है तो सबकुछ मुमकिन है। अस्पतालों, डॉक्टरों, फॉर्मेसी वालों का विकास हो रहा है। सरकार ने विकास का सही समाधान ढ़ूढ़ निकाला है। अब यात्रियों के स्थान पर कोयले को ट्रेन में बिठाओ, कोयले को पिकनिक मनवाओ। खैर, आपको बताना ही भूल गया। अभी कुछ समय पहले इंटरनेशनल डांस डे था। लेकिन आजकल “पावर सप्लाई” डांस करती नजर आ रही है, लोग पावर सप्लाई का डांस देख रहे हैं। कितना सुख है बिजली न आने का। लोग आजकल कैंडल लाइट डिनर एंजोय कर रहे हैं जी। ये सब सरकार की मेहरबानी है, जो कैंडल लाइट डिनर का मौका मिल रहा है। गीत याद आ रहा है-“तेरी मेहरबानियां, तेरी कद्रदानियां…!” बिजली नहीं है तो अखबारों में स्मार्ट सिटी की खूब चर्चाएं हैं। आजकल अखबारों की हैडिंग होती हैं-” स्मार्ट सिटी में ब्लैक आउट”। कितना गौरवमयी महसूस होता होगा स्मार्ट सिटी वालों को। यदि बिजली आ जाती तो क्या ऐसी अनुभूति स्मार्ट सिटी निवासियों को भला हो सकती थी ? बिल्कुल नहीं, कदापि नहीं। वाह वाह क्या आनंद है। हरेक आधे घंटे बाद बिजली कट लग रहा है और गीत बज रहा है- “जाती हूँ मैं…!” तोताराम जी कहते हैं कि बिजली ऐसे जाती है जैसे कोई प्रेमिका जा रही हो। यह प्रेमिका भावपूर्ण शब्दों में बुदबुदाती है -” मैं नहीं आ रही तेरे पास…!” कई बार यह कहती है -“लो चली मैं…!” बिजली को बार-बार जाता देख नींबू प्रफुल्लित है। चार सौ रूपये प्रति किलो का भाव होने पर अब तक कोई नहीं खरीद रहा था। बिजली को भला बुरा कहते हुए आजकल गरमी दूर भगाने के लिए लोग नींबू निचोड़ रहे हैं। अंत में, हम तो यही कहेंगे “एक मौका आप को, न दिन में बिजली न रात को…।”