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अर्थात मैं हिंदुस्तान की ‘ तूती ‘ हूँ।*

*अगर मुझसे सच पूछते हो तो हिंदी में पूछो जिससे मैं कहीं* *अच्छी बातें बता सकूं* 

वास्तविकता भी यही है अपनी मूल भाषा में ही बेहतर वैचारिक सम्प्रेषण सम्भव है ।  हिंदी भाषा पढ़ने, लिखने व बोलने में सहज,  लसरल माधुर्यपूर्ण है तथा कविता , कहानी, नाटक, उपन्यास आदि सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य उपलब्ध है । यह उदार भाषा है जिसने अन्य भाषाओं के अरबी, फारसी, अंग्रेजी भाषा के शब्दों को उनके मूल रूप में ही आत्मसात कर लिया । देश में 65 प्रतिशत हिंदी भाषी जनसंख्या है , लगभग हर प्रान्त के लोग हिंदी जानते व समझते हैं । अन्य भाषाओं के समान हिंदी का भी विज्ञान है। 

किंतु आज अपने ही देश मे हिंदी  उपेक्षित व पिछड़ेपन का दंश सहन कर रही है ।औपनिवेशिक काल मे ब्रिटिश सत्ता ने देश को राजनैतिक रूप को गुलाम बनाने के साथ साथ यहाँ की संस्कृति पर भी प्रहार किया। उनकी भाषा अंग्रेजी थी अतः व्यापारिक, राजनीतिक व व्यवहारिक कार्यों के लिए उन्होंने रंग व रक्त से भारतीय परन्तु सोच, रुचि, नैतिकता व बुद्धि से अंग्रेज परस्त वर्ग तैयार किया । थोड़ी सी अंग्रेजी जानने वाले को नौकरी व अन्य तरह की सुविधाएं प्रदान की । यहीं से हिंदी के दुर्दिन प्रारम्भ हो गए । स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जून 1946 में गांधी जी ने भारत के स्वतंत्र होने के छः माह के बाद सम्पूर्ण देश के कामकाज  हिंदी में होने की बात कही थी, परंतु आजादी के 71 वर्ष बीत जाने के बाद भी अधिकांश संस्थानों में कामकाज अंग्रेजी में ही होता है । 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का स्थान देकर इस भाषा को सुधारने का प्रयास किया।किंतु 1960 में दक्षिण में हिंदी हटाओ ,उत्तर में अंग्रेअभियान ने हिंदी की क्षति की ,साथ ही तकनीकी  विषयों पर हिंदी में शब्दावली व पुस्तकें न होने के कारण भी हिंदी का गौरव न्यून हो रहा है।

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