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कुर्ता खिंचाई की भरपाई में लम्बा वक्त लगेगा।

  नरेंद्र तिवारी ‘पत्रकार’

राजनीति में टांग खिंचाई का उपाए बरसो से इस्तेमाल किया जाता आ रहा है। इस उपाए को अपनाने का मुख्य उद्देश्य किसी अपने को राजनीति में आगे बढ़ने से रोकना है। टांग खिंचाई ओर टांग अड़ाई  के उपाय राजनीति में बहुतायत से प्रयोग किये जाते रहें है। टांग अड़ाई में जहां अपने प्रतिस्पर्धी को गिराकर या सार्वजनिक रूप से बेइज्जत कर अपनी राजनीति चमकाने का भाव छुपा है। जबकि टांग खिंचाई में उसे अपने से अधिक नहीं बढ़ने देने की भावना होती है। टांग अड़ाई ओर टांग खिंचाई का स्थान अब कुर्ता खिंचाई ने ले लिया है। कुर्ता खिंचाई का यह फार्मूला यूं तो काफी पुराना है, किंतु अभी हाल में इसका नवीन रूप में प्रयोग किया गया। कुर्ता खिंचाई माने अपने अंक बढाने के लिए अपने ही दल के अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदी के अंक कम करने हेतु अपने पड़ोसी का कुर्ता खींचना

। राजनीति के इस उपाय की इन दिनों भोपाल से लेकर दिल्ली तक बहुत चर्चा है। अब यह कुर्ता खिंचाई का उपाय कितना कारगर साबित होता है। यह आने वाले वक्त में पता चल सकेगा, फिलहाल तो कैमरे की नजर में कैद कुर्ता खिंचाई का उपाए जग हँसाई का विषय बन गया है। भारत में अपने राजनैतिक विरोधियों को नीचा दिखाने, अपमानित करने, आगे बढ़ने से रोकने के ओर भी बहुत से उपाय अमल में लाए जाते है। वैसे राजनीति में चेहरे पर कालिख पोतने, सफेद कपड़ो पर स्याही फैंकने के उपाय भी प्रचलित है। अपने से घूर विरोधी विचारधारा के नेता की बढ़ती राजनैतिक साख को कम करने के लिए कालिख ओर स्याही फैंकने के उपायों का इस्तेमाल अनेकों बार देश मे किया गया है। इन उपायों में नेता खुद शामिल नहीं होते। अपने किसी समर्थक को आर्थिक लाभ देकर या विचारधारा की घुट्टी पिलाकर इस कार्य को सम्पादित कराया जाता है। वैसे राजनिति में चांटा मारकर भी राजनैतिक फायदा लेने का उपाय मौजूद है। देश मे अनेकों बार इस उपाय का इस्तेमाल हुआ है। किन्तु इसके परिणाम उल्टे भी निकले है। चांटा मारने के उपाय को अपनाने वाले कि तो पब्लिक ने कुटाई कर दी वह गुमनामी के अंधेरो में खो भी गया ओर चांटा खाने वाले कहा से कहा पहुचं गए। उनका राजनैतिक ग्राफ दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। चांटा खाकर ख्यातनामी ओर प्रसिद्धि का आगे बढ़ने का यह क्रम जिस तेजी बढ़ रहा है। इसे देखते हुए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कोई लगातार पराजित नेता खुद की साख जमाने के लिए खुद को चांटा न लगवा ले,अब सबका परिणाम एकसा निकले यह जरूरी तो नहीं, वह तो बेहद भाग्यशाली ओर किस्मतवाले होतें है जो चांटा खाकर भी धूमकेतु की तरह प्रभावान बने रहते है। अब इन उपायों की चर्चा करते-करते हम जूता फैंकने के उपाय को तो भूल ही गए। वैसे जूता फैंकना, मुंह पर कालिख पोतना, स्याही फैंकना, चांटा मारना अधिक हिसंक उपाए है। इनका इस्तेमाल अधिकतर विरोधी विचारधारा के नेताओं पर किया जाता हैं। अपने ही दल में ऊंचे से ऊँचे पायदान पर पहुचने के लिए अभी कुर्ता खिंचाई के उपाय पर अधिक जोर दिया जा है। अब कोई भी दल इन उपायों से अछूता नहीं है। राजनीति में आगे बढ़ने के लिए लाख विचारधारा और सिंद्धातों का शोर किया जाता रहा हो, किंतु यह नकारात्मक उपाए ही राजनीति की असली ख्यातनामी, सफलता और प्रसिद्धि के कारण है।

अब राजनीति के सलाहकार भी नेताओं को सकारात्मक से अधिक नकारात्मक उपायों को अपनाने की सलाह देते हो तो कह नहीं सकतें है। अब जिस दल से कुर्ता खिंचाई फार्मूले को बल मिला है। वहां से तो अक्सर कैडरबेस होने और सिंद्धातों पर चलने की बात कहीं जाती रही है। अब किसी को कौन बताए कि ‘पत्थर बना देने’ की अपार सफलता के बाद कुर्ता खिंचाई की आवश्यकता कतई नहीं थी। पत्थर फैकने, पत्थर बना देने की चर्चा के मध्य कुर्ता खिंचाई प्रकरण भी खासा चर्चा में रहा है। इस ताजातरीन घटनाक्रम का परिणाम जो फिलहाल दिख रहा है। उसके अनुसार तो अंक बढाने के स्थान पर अंक कम होते दिख रहे है। अब राजनीति के सलाहकारों को यह भी बता देना चाहिए कि इन नकारात्मक उपायों के इस्तेमाल में कैमरों की नजर से बचा जाना भी जरूरी है। अब कैमरे पर अधिक सख्त दिख रहे नेताजी की कुर्ता खिंचाई प्रकरण ने जो जगहँसाई करवाई है। उसकी भरपाई कितने समय बाद ओर राजनीति के किस उपाए के अपनाने से होगी यह भविष्य के गर्त में छुपा है। फिलहाल कुर्ता खिंचाई की बड़ी चर्चा है।     ———

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