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केजरीवाल जी, मत खाई पैदा करो महाराष्ट्र-गुजरात में

आर.के. सिन्हा

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को महाराष्ट्र-गुजरात के घनिष्ठ संबंधों के बारे में अभी भी बहुत कुछ जानना-सीखना है। आईआईटी में इन विषयों की पढ़ाई तो होती नहीं, तो वे यह सब जानेंगे कहाँ से। उन्होंने अपने हलिया गुजरात दौर के समय भारतीय जनता पार्टी पर तंज करते हुए कहा कि “गुजरात भाजपा अध्यक्ष मराठी हैं। भाजपा को अपना अध्यक्ष बनाने के लिए एक भी गुजराती नहीं मिला? लोग कहते हैं, ये केवल अध्यक्ष नहीं, गुजरात सरकार यही चलाते हैं। असली मुख्यमंत्री यही हैं। ये तो गुजरात के लोगों का घोर अपमान हैं।”

उनका इशारा भाजपा की गुजरात इकाई के प्रमुख सीआर पाटिल की तरफ था। अगर अरविंद केजरीवाल को महाराष्ट्र तथा गुजरात के मिले-जुले इतिहास के बारे में थोड़ा भी ज्ञान होता तो वे इस तरह की टिप्पणी करने से बचते। यह टिप्पणी करते उन्हें जरा भी शर्म नहीं आई क्योंकि वे हरियाणवी होकर भी दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ठाठ से जमे हुये हैं। यह भी तो दिल्ली के पंडितों, ठाकुरों, जाटों, गुर्जरों, माथुरों, श्रीवास्तवों का अपमान है न?

केजरीवाल जी, जान लीजिए कि भाषाई आधार पर महाराष्ट्र और गुजरात तो 1 मई, 1960 को देश के मानचित्र पर आए थे। इससे पहले दोनों बॉम्बे स्टेट के अंग थे। दोनों राज्य बाकी देश के लिए उन सूबों के लिए उदाहरण पेश करते हैं, जिनमें आपस में वाद-विवाद लगा रहता है। गुजराती और मराठी शुरू से ही आपसी सांमजस्य और भाईचारे के भाव से रहे। गुजरात में भी और महाराष्ट्र में भी। ये एक-दूसरे के पर्याय बन कर रहे। जहां गुजराती कारोबारी बनने को बेताब रहे, वहीं मराठी कमोबेश अपने को नौकरी करने तक सीमित रखते रहे। दोनों ने एक-दूसरे के स्पेस को कभी लाँघा नहीं। मराठी समाज की रुचियों में कला, संस्कृति, संगीत वगैरह रहे। गुजराती समाज सच्चा और अच्छा कारोबारी रहा। दोनों में आपसी सामंजस्य का भाव भी रहा। इसलिए दोनों साथ-साथ रहकर आगे बढ़ते गए।

आप अब भी मुंबई के घाटकोपर, अँधेरी और मुलंद में घूमें तो लगता है कि मानो आप गुजरात के सूरत, भावनगर या अहमदाबाद में हों। इधर अधिकतर गुजराती परिवार ही रहते हैं। मुंबई के गुजराती भाषियों ने इस महानगर को अपनी कुशल आंत्रप्योनर क्षमताओं से समृद्ध किया। वे 1960 से पहले की तरह से मुंबई में अपने कारोबार को आगे बढ़ाते रहे। मुंबई के अनाज, कपड़ा, पेपर और मेटल बाजार में गुजराती छाए हुए हैं। हीरे के 90 फीसदी कारोबारी भी गुजराती हैं। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज की आप गुजरातियों के बगैर कल्पना नहीं कर सकते।

मुंबई में मराठियों और गुजरातियों को आप अलग करके नहीं देख सकते। दोनों मुंबई की प्राण और आत्मा हैं। मुंबई यानी देश की वित्तीय राजधानी। मुंबई में गुजराती मूल के लोगों के दर्जनों कॉलेज, स्कूल, धर्मशालायें, गौशालायें, सांस्कृतिक संस्थाएं वगैरह सक्रिय हैं। मुंबई के गुजराती भावनात्मक रूप से ही गुजराती रह गए हैं। वे मुंबई के जीवन में रस-बस गए हैं जैसे दूध में शक्कर। मुंबई में लगभग 35 लाख गुजराती रहते हैं। इसी मुंबई में धीरूभाई के बाद गौतम अडानी, अजीम प्रेमजी, रतन टाटा, आदी गोदरेज, समीर सोमाया जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जगह बनाने वाले अनेक गुजराती आए और आगे बढ़े। महाराष्ट्र में रहने वाले लगभग सभी गुजराती तीन भाषायें गुजरती, मराठी और हिंदी तो बोलते ही हैं।

अगर बात गुजरात के मराठी समाज की करें तो गुजरात में इन्होंने अपने लिए अलग जगह बना ली। गुजरात के सूरत, बडोदरा, अहमदाबाद, नवासरी वगैरह में ठीक-ठाक मराठी भाषी हैं। अरविंद केजरीवाल ने जिन सीआर पाटिल पर इशारों-इशारों में हल्ला बोला है, वे लोकसभा सदस्य हैं नवासरी से। वे गुजरात के बेहद लोकप्रिय नेता हैं। एक बार पाटिल ने कहा था, “महाराष्ट्र और गुजरात में प्रगाढ़ संबंधों के मूल में गुजरातियों का बड़ा दिल का होना रहा। गुजरातियों ने कभी किसी को बाहरी नहीं समझा। सबको अपने गले लगाया। मुझे भी गुजराती समाज ने बाहरी नहीं माना। अब मैं भी गुजराती हो चुका हूं। गुजराती ही बोलता हूं।”

पारसी भी भारत में सबसे पहले नवासरी में ही आए थे। यानी वे भी गुजराती हैं। ये बात सच है कि वाडिया, टाटा, गोदरेज जैसे अमीर पारसी मूल रूप से गुजराती ही हैं। ये घरों में गुजराती ही बोलते हैं। गुजरात में सर्वाधिक मराठी सूरत में हैं। ये अब सभी पूर्णतः गुजराती भाषी हो चुके हैं। हां, घरों में ये अब भी मराठी में संवाद करते हैं।

अरविंद केजरीवाल की अपने ऊपर की गई बयानबाजी के बाद सीआर पाटिल ने उन पर पलटवार करते हुए कहा ‘‘ केजरीवाल देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। वे खालिस्तानियों और नक्सलियों से संपर्क रखते हैं और उन्हें झूठ में महारत प्राप्त है।”

अब अरविंद केजरीवाल को कौन बताए कि महाराष्ट्र और गुजरात में सदैव परस्पर मैत्री और सहयोग का संबंध सदैव बना रहा। गुजराती और मराठी समाज में तालमेल के मूल में बड़ी वजह यह रही कि इन दोनों समाज में अहंकार या ईगो का भाव कभी नहीं रहा है। दोनों ने एक-दूसरे के पर्वों को आत्मसात कर लिया। गुजराती गणेशोत्सव को उसी उत्साह से मनाते हैं, जैसे मराठी नवरात्रि को आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं। इसलिए दो राज्यों के बनने के बाद भी इन दोनों समाजों और राज्यों में कभी दूरियां पैदा नहीं हुईं।

ये सच में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक राज्य का मुख्यमंत्री दो राज्यों के बीच खाई पैदा करने की चेष्टा कर रहा है। वे यह भी जान लें कि महाराष्ट्र और गुजरात देश के प्रमुख औद्योगिक राज्य हैं। इनकी आर्थिक प्रगति ने देश की अर्थव्यवस्था को और मजबूती प्रदान की है। नब्बे के दशक में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण का लाभ उठाते हुए इन दोनों राज्यों ने अपनी जीडीपी को मजबूत बनाया और वर्तमान में जीडीपी के हिसाब से महाराष्ट्र देश का सबसे अग्रणी राज्य है। भले ही गुजरात की जीडीपी महाराष्ट्र जितनी बड़ी न हो पर ग्रोथ रेट के मामले में यह महाराष्ट्र पर भारी है।

सबको पता है कि कभी एक ही प्रान्त का हिस्सा थे महाराष्ट्र और गुजरात। पर अलग होने के लगभग छह दशकों के बाद भी इन दोनों राज्यों में कभी किसी मसले पर कोई विवाद नहीं हुआ। इन राज्यों ने उस चीनी कहावत को गलत साबित कर दिया कि पड़ोसी कभी प्रेम और सद्भाव के वातावरण में नहीं रह सकते। यानी पड़ोसी तो लड़ेंगे ही। इनमें छत्तीस का आंकड़ा रहेगा ही। लेकिन, ऐसा गुजरात और महाराष्ट्र में कभी नहीं रहा।

अरविंद केजरीवाल सियासी इंसान हैं और वे कायदे से सियासत करें। देश यही चाहता है। पर वे तो देश के दो राज्यों में फूट डालने का काम कर रहे हैं सत्ता के लिए। उन्हें इससे बचना होगा वरना जनता उन्हें सबक सिखा देगी।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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