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आर्थिक-सामरिक संबंधों को बल देगी मोदी की यूरोप यात्रा

डॉ. रमेश ठाकुर

बीते ढाई महीनों में यूरोप के कई प्रमुख नेताओं का भारत आना और उनका हमारे प्रधानमंत्री को अपने यहां आने का आमंत्रण देकर बुलवाना, बताता है कि भारत की विश्व बिरादरी में अब क्या अहमियत है। ग्लोबल मार्केट पर भारत आज क्या मायने रखता है, शायद बताने की जरूरत नहीं। इसलिए कोरोना संकट के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूरोप यात्रा बहुराष्ट्रीय फलक पर बेहद लाभदायक कही जा रही है। दो मायनों में कुछ ज्यादा ही खास है।

अव्वल, रूस-यूक्रेन युद्ध से बिलबिला उठे यूरोपीय देश फ्रांस, डेनमार्क, स्वीडन, नार्वे, आइसलैंड, फिनलैंड व अन्य भारत से बड़ी आस लगाए बैठे हैं। ये देश भारत से उम्मीद करते हैं कि वह रूस-यूक्रेन विवाद में मध्यस्थता कर मामले को जल्द से जल्द सुलझवाए। इसके अलावा यूरोपीय राष्ट्र ये भी चाहते हैं कि भारत यूक्रेन के प्रति अपनी उदारता दिखाते हुए विश्व स्तर पर रूस की भर्त्सना करे। जबकि, इसे लेकर भारत शुरू से तटस्थ रहा है। बात भी ठीक है, भला कोई किसी के चलते अपने संबंध क्यों किसी से बिगाड़े?

पूरी दुनिया इस बात से वाकिफ है कि भारत हमेशा से शांति का पक्षधर रहा है। कुछ दिनों पहले यूरोपीय आयोग की अध्यक्षा ‘उर्सला वॉन डेर लेयेन’ ने भी भारत का दौरा किया था। उन्होंने भी मोदी को मनाने की पूरी कोशिश की। उस वक्त भी प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि उनका देश रूसी हमले का समर्थन बिल्कुल नहीं करता।

खैर, यात्रा के दूसरे मायने को समझें तो भारत पर इस बात को लेकर यूरोपीय देशों का जबरदस्त दबाव है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति से युद्ध रुकवाने को लेकर खुलकर बात करें। हालांकि ऐसी कोशिशें भारत ने जानबूझकर अभी तक नहीं की, अगर करते तो रूस से रिश्ते खराब हो जाते। इसके बाद यूरोपीय देशों का नजरिया भारत के प्रति कैसा है, उसे मोदी अपनी यात्रा के दौरान अच्छे से भांप रहे हैं। हालांकि जिस गर्मजोशी से उनका भव्य स्वागत हुआ, उससे लगता नहीं यूरोपीय देशों का नजरिया भारत के विरुद्ध है। ये सच है कि यूरोपियन देश खासकर फ्रांस, डेनमार्क, स्वीडन, नार्वे, आइसलैंड व फिनलैंड की कमर रूस-यूक्रेन युद्ध से टूट चुकी है। यहां से उबरना उनके लिए भविष्य में मुश्किल होगा। क्योंकि इन दोनों देशों पर यूरोपीय देशों की निर्भरता बहुत है। युद्ध अगर और लंबा खिंचा तो इनके लिए समस्याएं और बढ़ेंगी।

अगर कायदे से देखें तो मोदी की मौजूदा यात्रा भारत से ज्यादा यूरोपीय देशों के लिए ही खास है। यूरोप के दो बड़े मुल्क जर्मनी-फ्रांस, दोनों ही यूक्रेन के तेल-गैस व अन्य जरूरी सामानों पर निर्भर हैं। इनके लिए एक-एक दिन काटना भारी पड़ रहा है। मोदी की यूरोप यात्रा पहले से प्रस्तावित नहीं थी, तत्काल शिड्यूल बना। यात्रा से पूर्व करीब नौ देशों ने मिलकर बैठकें की जिसमें प्रधानमंत्री को अपने यहां आमंत्रित किया।

आमंत्रण का मकसद भी पानी की तरह साफ है। युद्ध अगर और लंबा चला तो इन देशों की हालत बेहद खराब हो सकती है। तेल-गैस की आपूर्ति यूक्रेन से ही होती है, जो बीते पौने दो महीनों से नहीं हुई है। वैकल्पिक आपूर्ति भी इनके यहां अब खत्म होने के कगार पर है। जर्मनी के साथ हमारे समझौते तो कई हुए हैं, लेकिन प्रमुख बात जो है वो सभी जानते हैं। लेकिन ये भी सच है, भारत को रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के जो प्रयास करने थे, पहले ही किया जा चुका है। जिसे पुतिन ने अनसुना किया। युद्ध बदस्तूर जारी है, उनको जो करना है करते जा रहे हैं। पुतिन किसी की भी नहीं सुन रहे।

अपनी यात्रा को प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी समझदारी से आगे बढ़ाया है। दरअसल सबसे पहले अपना हित देखना होता है। कमोबेश उसी नजरिए से मोदी वहां के नेताओं से मिले भी। व्यापार की दृष्टि से हमें सचेत रहने की जरूरत है। यूरोप के साथ हमारा व्यापारिक इतिहास अभी तक उतना अच्छा नहीं रहा। संबंध भी उतने अच्छे नहीं रहे, इन देशों के साथ हमारी विदेश नीति भी ज्यादा अच्छी नहीं रही थी। बीते कुछ ही वर्षों में गर्माहट आई है। तभी वहां के नेता मोदी को बुलाने को इतने उतावले हुए।

यूरोपीय राष्ट्र हमारे साथ सालाना करीब दो-तीन प्रतिशत साझा व्यापार करते हैं, जो कच्चे माल पर निर्भर होता है। बीते कुछ दशकों में प्रमुख यूरोपीय राष्ट्रों ने भारत के कच्चे माल से अरबों-खरबों डॉलर कमाए हैं। इसमें और गति आए, उसे लेकर प्रधानमंत्री का ज्यादा फोकस रहा। एक बात और है अगर यूरोपीय देश हमारे साथ राजनीतिक और सामरिक सहयोग बढ़ाते हैं तो उसका एक जबरदस्त मुनाफा ये भी होगा, उससे चीन-अमेरिका का रुतबा भी कम होगा। मोदी की यात्रा पर चीन, अमेरिका और पाकिस्तान की नजरें भी टिकी हुई हैं।

यूरोप यात्रा की प्रमुख बातों पर चर्चा करें तो शुरुआती दो दिनों में मोदी कई प्रमुख नेताओं से मिले, ताबड़तोड़ कई समझौते किए, हरित उर्जा समझौता जिसमें प्रमुख रहा। इसमें कुछ 25 कार्यक्रम प्रमुख हैं. जिनमें उन्होंने शिरकत की। सबसे खास तो भारत-नार्डिक शिखर सम्मेलन रहा जिसमें कोरोना महामारी के बाद आर्थिक सुधार, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणनीय ऊर्जा जैसे विषयों पर चर्चा हुई, ये चर्चाएं 2019 से छूटी हुईं थीं जिसे अब बल दिया गया।

प्रधानमंत्री अपनी अल्प यात्रा के दौरान आठ-दस प्रमुख नेताओं से मिले हैं, उनके साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बातचीत को आगे बढ़ाया। साथ ही सबसे प्रमुख मुलाकातें उनकी दुनिया के उन पचास प्रमुख कारोबारियों से रही जो भारत आकर निवेश रूपी व्यापार करने के इच्छुक हैं, उन्हें प्रधानमंत्री ने न्योता दिया है। उम्मीद है अगले कुछ समय बाद मोदी की यूरोप यात्रा के सुखद तस्वीरें दिखाई देने लगेगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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