हिसार: मकर संक्रांति पर महक उठी हरियाणवी लोक संस्कृति
हिसार, 13 जनवरी। हरियाणा प्रदेश ही नहीं, अपितु देशभर में हरियाणवी संस्कृति को पहचान दिलाने की मुहिम में हिसार की लघु सचिवालय कॉलोनी पार्क समिति ने मान-मनुहार व दान के त्योहार लोहड़ी व मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर पार्क में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में रेडक्रॉस के सचिव सुरेंद्र श्योराण मुख्य अतिथि रहे और कार्यक्रम की अध्यक्षता बजरंग लाल श्योराण ने की।
इस अवसर पर मकर संक्रांति पर घर-आंगन की चारदीवारी के अन्दर निभाई जाने वाली मान मनोवल की रस्म रिवाज की परंपरा का सजीव मंचन किया। इसमें दिलेर हरियाणा संस्था से जुड़ी महिलाओं ने अपने बुजुर्गों चाचा-चाची, ताऊ-ताई, सास-ससुर, जेठ-जेठानी के मान-सम्मान करने की हरियाणवी परम्पराओं को ठेठ देशी अंदाज में दिखाया। इस दौरान महिला प्रतिभागियों ने हरियाणवी वेशभूषा पहन विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले लोक गीत गाकर और नृत्य प्रस्तुत कर हरियाणवी लोक संस्कृति का मंचन किया। महिलाओं ने सक्रांति उत्सव में हरियाणवी परम्परागत अंदाज में कुणबे की महिलाएं अपने बुर्जुगों के चरण स्पर्श कर भूलवश, जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगने की परम्परा का सजीव प्रदर्शन किया।
इस दौरान दान दक्षिणा की पारंपरिक रीति-रिवाजों को जीवंत करने के साथ व्यवहारिक रूप देते हुए बुजुर्ग महिलाओं को मनाया गया। पार्क समिति के अध्यक्ष बजरंग श्योराण और समिति सदस्यों ने महिलाओं को शाल और पुरुषों को कंबल ओढ़ाकर, सम्मानित कर समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत किया। मौजूद महिलाओं व बच्चों को जुराबें वितरित की। इसी कड़ी में 100 वर्षीय शांति देवी, बिरमा, नौरंगी, रोशनी, धनपति, सरस्वती, राजौ, शकुंतला, किताबो, बाला, मामो, शीला, भतेरी, ज्ञानो, गुड्डी, सुमित्रा, सुदेश आदि 100 मातृशक्ति को शाल ओढ़ाकर मनावन की परंपरा को निभाया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सचिव सुरेंद्र श्योराण ने हरियाणवी संस्कृति से ओतप्रोत कार्यक्रम की प्रशंसा की। इस अवसर पर लघु सचिवालय पार्क समिति के अध्यक्ष बजरंग लाल श्योराण , उपाध्यक्ष रामकुमार व जयबीर को विशिष्ट कार्य के लिए हरियाणवी पगडी़ बांधकर एवं पार्क के माली को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। सभी दर्शकों व कलाकारों को मूंगफली, रेवड़ी बांटी गई। दिलेर हरियाणा संस्था की अध्यक्ष कमलेश श्योराण ने बताया कि मकर संक्रांति त्यौहार का हमारी लोक संस्कृति और संस्कारों को जीवंत करने के लिए बहुत योगदान है।