स्वयं को आत्मा न मानना सभी पापों में सबसे बड़ा पाप है : गुप्ति सागर
गुप्तिधाम में प्रवचन के बाद महाराज श्री से आशीर्वाद लेते श्रद्धालू।
गन्नौर।। जीटी रोड स्थित गुप्तिधाम में चतुर्मास के अंतिम पड़ाव में गुप्ति सागर महाराज ने प्रवचनों की रसधारा प्रवाहित करते हुए कहा कि अन्य क्षेत्र में किया हुआ पाप तीर्थ क्षेत्र में आराधना करने पर समाप्त हो जाता है किन्तु तीर्थ क्षेत्र में किया गया पाप कभी खत्म नही होता। गुप्ति सागर ने कहा कि हम आध्यात्मिकता का दम भर रहे हैं लेकिन नैतिकता भी नहीं पाल पा रहे हैं । महाराज श्री ने कहा कि स्वयं को आत्मा न मानना सभी पापों में सबसे बड़ा पाप है। गुप्ति सागर महाराज ने कहा कि जिनेन्द्र भगवान ने कहा है कि पापों में स्वाद लेना ही पापी का लक्षण बताया है। आत्मा में राग-द्वेष की उत्पत्ति हिंसा है। जब धर्म क्षेत्र में हम राग वर्धक कार्यक्रम करते हैं तब हिंसा का दोष लगता है 7 वहीँ पर छोटी छोटी बातों के लिए अपने साधर्मियों से द्वेष भाव करते हैं ,उनका अपमान कर देते हैं तब हिंसा का दोष लगता है। महाराज श्री ने कहा कि अपनी आराधना की क्रियाओं में भी अधिक से अधिक अहिंसा की भावना रखकर आराधना करना चाहिए। इस अवसर ब्रह्मचारणी रंजना दीदी, अमित जैन, पवन जैन, एस के जैन सहित निर्माण विहार से आए सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे।