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जीने का सही सलीका साहित्य ही प्रदान करता हैः गोविन्द मिश्र

नई दिल्ली, 07 जून । साहित्य अकादमी ने अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम ‘लेखक से भेंट’ के लिए मंगलवार को प्रख्यात कथाकार गोविन्द मिश्र को आमंत्रित किया। कार्यक्रम में उन्होंने श्रोताओं से बातचीत के दौरान अपने व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश तो डाला ही, श्रोताओं के सवालों के उत्तर भी दिए। उन्होंने कहा कि जीने का सही सलीका साहित्य ही प्रदान करता है।

अपने लेखन प्रक्रिया के बारे में गोविन्द मिश्र ने कहा कि उनके लेखन में किसी भी वाद का प्रभाव नहीं है। लिखते समय वे केवल जीवन की सच्ची घटनाओं को महत्त्व देते हैं और वही उनकी रचना का पक्ष होता है। उन्होंने कहा कि कोई भी लेखन छोटा या बड़ा नहीं होता है, बल्कि महत्वपूर्ण यह होता है कि वह कितनी गहराई से लिखा गया है। इसलिए लेखकों में भी छोटा-बड़ा होने की कोई बात नहीं होनी चाहिए। जीने का जो सलीका साहित्य देता है, वह साहित्यकार की सबसे बड़ी निजी उपलब्धि है।

एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि बाहरी घटनाएं ही नहीं, बल्कि अंदर के संबंधों की जटिलताएं भी इतनी घातक होती हैं कि वह जीवन को तबाह कर देती हैं। शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली अपनी आत्मकथा धारा के विपरीत के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि यह शीर्षक उन्हें विष्णुकांत शास्त्री ने सुझाया था। श्रोताओं के बीच उन्होंने अपने जीवन के कई रोचक संस्मरण भी साझा किए और अपनी कई कहानियों के सच्चे पात्रों के बारे में भी जानकारी दी।

कार्यक्रम के दौरान साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित और नंदकिशोर आचार्य द्वारा संपादित गोविन्द मिश्र रचना-संचयन का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने अंगवस्त्रम् प्रदान कर गोविन्द मिश्र का स्वागत किया। कार्यक्रम में सुरेश ऋतुपर्ण, निर्मलकांति भट्टाचार्य, कैलाशनारायण तिवारी, अलका सिन्हा, राजकुमार गौतम, ओम निश्चल आदि प्रख्यात लेखक एवं कई महाविद्यालयों के विद्यार्थी भी उपस्थित थे।

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