राष्ट्रीय

 उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष ने न्यायपालिका को दी संवैधानिक मर्यादा के भीतर रहने की सलाह

जयपुर, 11 जनवरी। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ तथा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राजस्थान विधानसभा में बुधवार से आरंभ हुए 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में न्यायपालिका को संवैधानिक मर्यादा के भीतर रहने की सलाह दी है। अतिथियों ने भी न्यायपालिका से अपेक्षा की है कि वह संवैधानिक मर्यादा और सभी संस्थाओं के बीच संविधान से प्रदत्त शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत का पालन करें।

बुधवार को राजस्थान विधानसभा में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन का उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उद्घाटन किया। इस मौके पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने भी उद्घाटन समारोह को संबोधित किया। उद्घाटन सत्र में 20 पीठासीन अधिकारियों ने भाग लिया।

इस मौके पर उपराष्ट्रपति धनखड़ ने भारत को मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ के रूप में वर्णित किया और इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र का सार लोगों के जनादेश की व्यापकता और उनके कल्याण को सुनिश्चित करने में निहित है। धनखड़ ने संसद और विधानसभाओं में व्यवधान की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रतिनिधियों से लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के प्रति सचेत रहने का आग्रह किया। उपराष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि सम्मेलन इन मुद्दों को तत्काल हल करने के तरीकों पर विचार-विमर्श करेगा। संविधान में परिकल्पित राज्य के सभी अंगों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों की आवश्यकता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र तब कायम रहता है और फलता-फूलता है जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए मिलकर काम करती हैं।

इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सन्देश भी पढ़ा गया, जिसमे उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सशक्त और समृद्ध करने में हमारे विधायी निकायों की भूमिका सराहनीय है। उन्होंने आशा व्यक़्त की कि हमारी विधायिकाएं लोगों के हितों की रक्षा के लिए अपनी कार्यप्रणाली में आधुनिक बदलावों के साथ देश की प्रगति में और मजबूती से आगे बढ़ेंगी।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि आम जनमानस में विधायिकाओं एवं जनप्रतिनिधियों के बारे में प्रश्न चिन्ह है। हमें इस प्रश्न चिन्ह को भी सुलझाना है और विधान मंडलों की इमेज और प्रोडक्टिविटी को और बेहतर बनाना है। बिरला ने कहा कि विधान मंडलों में होने वाली चर्चा अधिक अनुशासित, सारगर्भित और गरिमामयी होनी चाहिए। संविधान की प्रावधानों की उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं की मंशा यही थी कि हमारी लोकतान्त्रिक संस्थाएं आम जनता के जीवन में सामाजिक आर्थिक बदलाव को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी संस्था के रूप में काम करे। उन्होंने जोर देकर कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संसद और विधान मंडलों को अधिक प्रभावी, उत्तरदायी और उत्पादकतायुक्त बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि पीठासीन अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि विधान मंडलों में जनप्रतिनिधियों के माध्यम से नागरिकों की आशाओं, अपेक्षाओं और उनके अभावों, कठिनाइयों की अभिव्यक्ति होने का पर्याप्त अवसर दें। उन्होंने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका- तीनों ही अपनी शक्तियां तथा क्षेत्राधिकार संविधान से प्राप्त करते हैं और तीनों को एक दूसरे का और क्षेत्राधिकार का ध्यान रखते हुए आपसी सामंजस्य, विश्वास और सौहार्द के साथ कार्य करना चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका को संवैधानिक मर्यादा के भीतर रहने की सलाह दी।

समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि आजादी के 75 वर्षों में देश में संसदीय लोकतंत्र को मजबूत किया है और कई अन्य देशों की तुलना में भारत ने संसदीय प्रणाली को दिशा प्रदान करने वाली प्रणाली को मजबूत किया है। गहलोत ने उचित संसदीय आचरण और विधायी संस्थाओं के नियमों के पालन पर जोर देते हुए कहा कि सदन की मर्यादा और गरिमा बनाए रखना सभी सदस्यों की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने न्यायपालिका और विधायिका को एक साथ काम करने पर जोर दिया।

इस अवसर पर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने विधानसभाओं में गुणवत्तापूर्ण बहस पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोकतांत्रिक संस्थानों पर लोगों का विश्वास, विशेष रूप से युवाओं का विश्वास कम न हो। उन्होंने यह भी जिक्र किया कि बदलते परिदृश्य के साथ, विधायिकाएं प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ स्वयं को ढाल रही हैं और 21वीं सदी के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए विधायी निकायों को विकसित करने की आवश्यकता है।

राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी ने कहा कि कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना विधायिका का सर्वप्रथम दायित्व है और जनता की आकांक्षाओं, अपेक्षाओं को पूरा करने में कार्यपालिका की स्क्रूटनी लोकतंत्र को परिपक्व करती है। डॉ जोशी ने कहा कि वित्तीय स्वायत्ता के अभाव में विधायिका अपने दायित्वों के निर्वहन में असक्षम रह जाती है। सूचना क्रांति के कारण आए बदलावों का उल्लेख करते हुए डॉ जोशी ने कहा कि विधायी नियमों और कानूनों की समीक्षा की विशेष आवश्यकता है। लोकतांत्रिक शासन में विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच संतुलन अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस अवसर पर लोकसभा सचिवालय से प्रकाशित संसद में राष्ट्रपति के संबोधन का अद्यतन संस्करण और सीपीए राजस्थान शाखा की स्मारिका “नए आयाम” का विमोचन किया गया। राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया। सम्मेलन के पहले दिन जी-20 में लोकतंत्र की जननी भारत का नेतृत्व, संसद और विधानमंडलों को अधिक प्रभावी, जवाबदेह और उपयोगी बनाने की आवश्यकता, डिजिटल संसद के साथ राज्य विधानमंडलों को जोड़ना और संविधान के आदर्शों के अनुरूप विधायिका और न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने की आवश्यकता पर चर्चा की गई। सम्मेलन का समापन सत्र 12 जनवरी को होगा। राज्यपाल कलराज मिश्र समापन भाषण देंगे। समापन सत्र में लोकसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, राज्यसभा के उपसभापति और राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष भी शामिल होंगे।

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