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एक गधे का धार्मिक प्रवचन

रामविलास जांगिड़
जंगल में एक गधा धार्मिक प्रवचन देने का धंधा किया करता। एक चालाक भेड़िया उसका प्रधान धर्म चेला हुआ करता। शाम के समय जब उल्लू अपने कोटर से बाहर निकल कर एक मीठी सियासी तान छेड़ रहा था, तब गधे ने भेड़िए को अपने पास बुलाया। उसे अधर्म और अनीति के आसन पर बिठाया और धर्माचरण के लिए एक कहानी का अंश सुनाया। हे प्रिय चतुर चालाक भेड़िशिष्य श्रेष्ठी! सुन! एक छोटी-सी धार्मिक कहानी मैं पढ़ता था।

चतुर लोगों ने धर्म को अंधा बना दिया है। इसलिए अब धर्म जन्मांध होने लगा है। वह जहर के खेत बोने लगा है। अंधा धर्म और उसका एक धार्मिक आस्थावान आंख वाला मित्र एक कुर्सी के लिए संवैधानिक मूल्यों को पार करते थे। वे दोनों अलग-अलग कुर्सी यात्रा पर निकले थे, रास्ते में मिलना हो गया और उस धार्मिक आस्थावान मित्र ने उस अंधे धर्म को अपने साथ ले लिया। वे कुछ दिन साथ-साथ चले, उनमें मैत्री घनी हो गई। एक दिन सुबह अंधा धर्म पहले उठ गया, सुबह उसकी नींद पहले खुल गई। उसने टटोलकर अपनी सियासी पार्टी के झंडे वाली लकड़ी ढूंढ़ी। चुनावों की रात थी और वोटिंग के दिन थे। लकड़ी तो उसे नहीं मिली। एक पुराने मुद्दों का सांप पड़ा हुआ था। यह नए चुनावों के मारे एकदम सिकुड़कर कड़ा हो गया था।

उसने उसे उठा लिया। उसने टीवी डिबेट को धन्यवाद दिया कि मेरी पार्टी के झंडे की लकड़ी तो खो गई, लेकिन उससे बहुत ज्यादा बेहतर, बहुत प्रभावी और जनता में तनाव पैदा करने वाली सुंदर लकड़ी तुमने मुझे दे दी। उसने टीवी डिबेट को धन्यवाद दिया कि तुम बड़ी कृपालु हो। उसने उसी लकड़ी से अपने आंख वाले आस्थावान मित्र को धक्का दिया और उठाने की कोशिश की कि उठो, सुबह हो गई है। वह आंख वाला मित्र उठा। देखकर घबड़ाया। उसने कहा- तुम हाथ में ये क्या पकड़े हुए हो? इसे एकदम छोड़े दो। ये पुराने मुद्दों का घनघोर विषधारी सांप है और यह जनता के लिए खतरनाक हो जाएगा। वह अंधा धर्म बोला- मित्र! ईर्ष्या के कारण तुम मेरी इस कुसीर्मार्गी लकड़ी को सांप बता रहे हो! चाहते हो कि मैं इसे छोड़ दूं, तो तुम इसे उठा लो। अंधा जरूर हूं, लेकिन इतना नासमझ नहीं हूं। पुराना पका-पकाया धर्म हूं!

उस आंख वाले धार्मिक आस्था पुरुष ने कहा- पागल हो गए हो? उसे एकदम छोड़ दो। वह सांप है और देश-दुनिया की जनता के लिए खतरा है। अंधा धर्म हंसा और बोला- तुम इतने दिन मेरे साथ रहे लेकिन ये नहीं समझ पाए कि मैं भी समझदार हूं। तुम्हारी तरह परम कुर्सी मार्गी हूं। मेरी पार्टी के झंडे की लकड़ी खो गई है और टीवी डिबेट ने एक बहुत सुंदर लकड़ी मुझे दे दी है, तो तुम उसे सांप बता रहे हो? वह अंधा धर्म गुस्से में, मित्र की ऐसी ईर्ष्या और जलन को देखकर, अपने रास्ते पर चल पड़ा। कुछ देर में समझदार लोगों का एक नया सूरज निकला और उन पुराने मुद्दों वाले सांप की सिकुड़न समाप्त हो गई। वोटिंग का समय बीत गया। इसी समय उस मुद्देवान सांप ने अंधे धर्म को काट लिया। अब धर्म अंधा भी था और उसे पुराने मुद्दों का जहर भी चढ़ चुका था। बात समाप्त कर गधे ने भेड़िए की तरफ देखा। दोनों एक दूसरे की तरफ ठहाका लगाकर पूरी दुनिया को देखने लगे। वे धर्म की अफीम में बहकने लगे।

— रामविलास जांगिड़,18, उत्तम नगर, घूघरा, अजमेर (305023) राजस्थान

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