राष्ट्रीय

तानसेन समारोहः पूरब और पश्चिम की सांगीतिक प्रस्तुतियों की भावनात्मक मिठास से रसिक हुए सराबोर

ग्वालियर, 21 दिसंबर। प्रेम, विरह और श्रृंगार से परिपूर्ण संगीत की भावनात्मक मिठास दिलों को जोड़ती है। संगीत का संदेश भी शास्वत है और वह है प्रेम। विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूर्धन्य साधकों और सुदूर अफ्रीकन देश जिम्बाब्वे से आए संगीत कला साधकों ने अपने गायन-वादन से यही संदेश दिया। पूरब और पश्चिम की सांगीतिक प्रस्तुतियों का गुणीय रसिकों ने जी भरकर आनंद उठाया।

पारंपरिक ढंग से ध्रुपद गायन के साथ हुई सभा की शुरुआत

तानसेन समारोह में बुधवार की प्रातःकालीन सभा का शुभारंभ स्थानीय तानसेन संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन के साथ हुई। राग “जौनपुरी” और ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे” नाद सुघर घर बसायो”। पखावज पर जगत नारायण ने संगत की।

गान महृषि तानसेन के आंगन में विश्व संगीत की आहुति

सुबह की सर्द बेला में जिम्बाब्वे के ब्लेसिंग चिमंगा बैंड के कलाकारों ने जब अलावा मारींबा, सिंथेसाइजर, गिटार, सैक्सोफोन, ड्रम और मरीबा नामक वाद्य यंत्रों से शास्त्रीय संगीत से साम्य स्थापित कर मीठी-मीठी विशुद्ध अफ्रीकन धुनें निकालीं तो एक बारगी ऐसा लगा, मानो गान महर्षि तानसेन के आंगन में हो रहे संगीत के महाकुंभ में विश्व संगीत की आहुतियां हो रही हैं। इस बैंड ने अफ्रीका की सांस्कृतिक व मौलिक धुनों को जब ऊर्जावान होकर तेज रिदम के साथ प्रस्तुत किया तो युवा रसिक श्रोताओं में जोश भर गया। प्रकृति से जुड़े और निखरे अफ्रीकन संगीत ने गुणीय रसिकों को भीतर तक प्रभावित किया।

पं सुखदेव चतुर्वेदी ने अपनी गायकी से भरा गागर में सागर

समारोह में मुंबई से आये पण्डित सुखदेव चतुर्वेदी के राग माधुर्य ने सुधीय रसिकों को भीतर तक प्रभावित किया। उन्होंने अल्प समय में तीन अलग-अलग रागों में बंदिशें पेश कर गागर में सागर भर दिया। उन्होंने तानसेन के सुपुत्र विलासखान द्वारा सृजित राग “विलासखानी तोड़ी” में एक बंदिश पेश की। ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे “चंद बदनी मृग नयनी हंस गमनी…”। दरभंगा सांगीतिक घराने की ध्रुपद गायकी में पारंगत पण्डित चतुर्वेदी देश के शीर्ष शास्त्रीय गायकों में शुमार हैं। उन्होंने अपने गायन को विस्तार देकर राग” देसी” और धमार ताल में ” हूँ तो तुम..” का गायन किया। उन्होंने राग ” शुद्ध सारंग” और सूल ताल में “हर हर महादेव…” बंदिश गाकर अपने गायन को विराम दिया।

सुरों का रमणीय गुलदस्ता सौंप गए अभिषेक बोरकर..

मैहर सेनिया घराने के युवा सरोदिया अभिषेक बोरकर की अंगुलियों की थिरकन से सरोद से मधुर सुर झरे तो रसिकों को ऐसा आभास हुआ कि कोई उन्हें सुंदर -सुंदर फूलों का रमणीय गुलदस्ता सौंप रहा है। तानसेन समारोह में पुणे से आए इस संवेदनशील सरोद वादक की प्रस्तुति में दाहिने और बाएं हाथ के बीच वांछित संतुलन से सुरों की वर्षा देखते व सुनते ही बन रही थी। अभिषेक बोरकर ने मधुर राग ” चारुकेशी” में परिचयात्मक अलाप के बाद तीन ताल में विलंबित व द्रुत गत बजाकर रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

“का करूं सजनी आए न बालम…”

तानसेन समारोह में पुणे से आए सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक आनंद भाटे ने जब अपनी दानेदार सुरीली आवाज में बड़े गुलाम अली खां साहब की प्रसिद्ध ठुमरी “का करूं सजनी आए न बालम..” गाकर सुनाई तो पूरे माहौल में रंजकता छा गई। मूर्धन्य संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के इस शिष्य का खयाल गायन रसिकों को खूब भाया। उनकी गायकी में चैनदारी ख़ासा असर छोड़ रही थी। उन्होंने राग “वृंदावनी सारंग” से गायन की शुरुआत की। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश कीं। झप ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे “तुम रब तुम साहिब तुम ही करतार…”। इसी क्रम में तीन ताल में पेश की गई द्रुत बंदिश के बोल थे “जाऊं मैं तोपे बलिहारी”। दोनों ही बंदिशों को उन्होंने घरानेदार अंदाज में पेश किया। रागदारी की शुद्धता को बरकरार रखकर उन्होंने राग खिला दिए। विविधता पूर्ण तानों की अदायगी भी लाजवाब रही।

राग ” देशी” में वायोलिन वादन सुन झूमे रसिक

समारोह में प्रातःकालीन सभा का समापन भोपाल के प्रवीण शेवलीकर के वॉयलिन वादन से हुआ। उन्होंने राग “देसी” में अपने वादन की शुरुआत की। इस राग में उन्होंने दो रचनाएं पेश कीं। दोनों ही रचनाओं को बजाने में उन्होंने अपने कौशल के कई रंग दिखाए। उनके वॉयलिन से झर रहीं रसभीनीं तानें सुन रसिक झूम उठे। रागदारी की बारीकियों से परिपूर्ण प्रवीण का वादन गायकी अंग का था। उन्होंने अपने वादन का समापन राग “भैरवी” में दादरा की धुन निकालकर किया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker