आजादी के सात दशक बाद भी जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं फरकियावासी
सहरसा,24 जुलाई। जिले के सलखुआ प्रखंडवासी हर वर्ष बाढ़ का दंश झेलते हैं व विस्थापित होते हैं।आजादी के सात दशक बाद भी फरकियावासी पूर्वजों की भांति जिल्लत की ज़िंदगी जीने को विवश हैं। अबतक आवागमन के लिए सुदृढ़ नहीं होने से काफी समस्याओं के दौर से बाढ़ बरसात में इन्हें गुजरना पड़ता है।
आवागमन के लिए बस एक मात्र सहारा अब भी इनका नाव ही है। जान जोखिम में डालकर तटबन्ध के अंदर से प्रखंड व अनुमंडल नाव से आर पार कर प्रतिदिन आया जाया करते हैं। डेंगराही में कई बार अनसन के बाद भी पूल निर्माण सपना बनकर रह गया है। बताते चलें कि कोशी नदी हर वर्ष कटाव करती है और उपजाऊ भूमि सहित खेत खलिहान के साथ घर बार को नदी अपने गर्भ में समाहित करती है। एक बार फिर तीन चार दिनों से सलखुआ प्रखंड के बगेवा में कटाव तेज हो गया है। बगेवा उतरी भाग में कोशी तेजी से कटाव करती उपजाऊ खेत – खलिहान को नदी में विलीन कर रही है। कोशी के उग्र कटाव से ग्रामीण व किसान भयभीत हैं।
आंखों के सामने उपजाऊ जमीन में कटाव होता देख किसान परेशान हैं। बगेवा के दर्जनों ग्रामीण व किसानों ने बताया की इसी जमीन पर फसल उपजा कर परिवार का भरण पोषण करते हैं। जहां धान की फसल बारिश नहीं होने से सूख रही है व भूमि फट रही है। जिससे इस बार उपज की आश छोड़ चुके हैं। अब उपजाऊ भूमि भी कट जाएगी तो घर बार व परिवार का गुजारा करना मुश्किल होगा।
बगेवा के बिजेन्द्र यादव, सिकन्दर यादव, सूर्यनारायण यादव, पवनदेव यादव, मनोज यादव, रुवीन यादव, धुर्व यादव, शरद यादव, अभिमन्यु यादव आदि ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव के साथ सौतेलापन व्यवहार किया जा रहा है। जिस कारण अब तक कटाव निरोधी कार्य शुरू नहीं हुआ है। जबकि पहले भी कटाव के बारे में ध्यानाकृष्ट कराये जाने के लिए पत्राचार के बाबजूद प्रशासन व विभाग को कटाव की जानकारी होते हुए भी कटाव निरोधक कार्य अब तक नहीं किया जा रहा है।उन्होंने बताया कि कोशी नदी पहले गांव से करीबन 7 से 8 किलोमीटर दूर बहती थी। लेकिन धीरे धीरे काटते-काटते अचानक उग्र रूप वर्ष 2017 में ली और आधा गांव से अधिक बगेवा को अपने गर्भ में समा यहां तक आ गई है। बीते दिनों से कटाव उग्र है और कटाव थमने का नाम नहीं ले रहा है। हम लोग का अब खेत-खलिहान भी कट रहा है। कई खेत तो कटकर नदी में विलीन हो चुका है।
दरअसल कोशी नदी के कटान की वजह से आधा से अधिक गांव बगेवा और पूरा गांव मियाजागिर, पिपरा, कमराडिह गांव बीते वर्ष 2017-18 में नदी में समा गया था। नदी के किनारे गांव के सैकड़ों लोगों के खेत हैं जिसमें अभी धान रोपाई का की गई है व भी कटाव की जद में आ गया है जिससे किसान परेशान हैं।