दिल्ली

दिल्ली में वर्षा जल को सहेजने के लिए उपमुख्यमंत्री ने विभिन्न एजेंसी के साथ की समीक्षा बैठक

नई दिल्ली, 22 जून । दिल्ली में बरसात के पानी को सहेजकर रखने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। इस साल की बारिश में पूरी दिल्ली में बारिश के पानी को इकठ्ठा करने के लिए 1500 से अधिक नए अधिक रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट्स बनाए जा रहे हैं जो 15 जुलाई से पहले बनकर तैयार हो जाएंगे।

इस बाबत उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बुधवार को पीडब्ल्यूडी, दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग, दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद् (एनडीएमसी), डीयूएसआईबी के उच्चाधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की व नए बनाए जा रहे रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट्स से संबंधित तैयारियों का जायजा लिया।

इस मौके पर सिसोदिया ने कहा कि वर्षा जल एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है और दिल्ली जैसे शहर के लिए इसे सहेजकर रखना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि हम पानी के लिए अपने पड़ोसी राज्यों पर निर्भर है। हम ग्राउंड वाटर को रिचार्ज कर भूजल स्तर बढ़ाना चाहते हैं, ताकि बाद में उसका इस्तेमाल किया जा सके और पानी के मामले में दिल्ली आत्मनिर्भर बन सके। इसलिए पूरी दिल्ली में विभिन्न नोडल एजेंसीज साथ मिलकर 1548 नए रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट्स बना रही है, जिसके बाद इनकी संख्या बढ़कर 2475 हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि बरसात के पानी को व्यर्थ बहने देने से रोककर इन पिट्स को भरने का काम किया जाएगा जिसकी मदद से हम ग्राउंड वाटर रिचार्ज कर पाएंगे और बरसात में व्यर्थ बहने वाले लाखों लीटर पानी को स्टोर कर पाएंगे। उन्होंने सभी नोडल एजेंसीज को रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट्स बनाने के काम को तेजी से पूरा करने की बात कही ताकि मानसून के दौरान इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार दिल्ली को पानी के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए तेजी से काम कर रही है। इस बाबत पिछले दिनों मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने डेनमार्क के राजदूत फ्रेडी स्वैन से मुलाकात की थी और डेनमार्क के वर्षा जल संरक्षण मॉडल को समझा था।

कैसे काम करता है रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट

रेन वाटर हार्वेस्टिंग पिट्स की कार्यप्रणाली बहुत सामान्य होती है जिसमें जमीन पर सोखता गड्ढे बनाए जाते हैं। बरसात के दौरान बारिश के पानी को इन गड्ढों के माध्यम से एकत्र किया जाता है और यह पानी जमीन के अंदर जाता है जिससे भूजल का स्तर बढ़ता है। जिस तेजी से भूजल स्तर कम होता जा रहा है, उसे देखते हुए वर्तमान में जल संरक्षण के ऐसे उपाय बेहद महत्वपूर्ण हो चुके हैं।

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