वाराणसी में यूपी का पहला इलेक्ट्रिक पशु शवदाह गृह बनाने की तैयारी, राख से बनेगा खाद
– प्रतिदिन 12 जानवरों का हो सकेगा डिस्पोजल
वाराणसी, 18 सितम्बर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रदेश का पहला इलेक्ट्रिक पशु शवदाह गृह बनाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए प्रदेश सरकार गंभीर हैं । शवदाह गृह अगले महीने अक्टूबर तक बनकर तैयार होने की उम्मीद है। चोलापुर विकासखंड क्षेत्र में बन रहे इस इलेक्ट्रिक पशु शवदाह गृह की लागत 2.24 करोड़ रुपये है। शवदाह गृह बनने से मृत पशु सार्वजनिक स्थानों पर फेंके हुए नहीं दिखेंगे और न ही इनके सड़ने की दुर्गंध ही आएगी।
-अब तक नहीं थी मृत पशुओं के डिस्पोजल की व्यवस्था
विश्व पर्यटन के मानचित्र पर तेजी से उभर रहे वाराणसी का कायाकल्प भी तीव्र गति से हो रहा है। प्राचीनता को संजोए हुए काशी आधुनिकता से तालमेल बनाए हुए तेजी से विकास कर रही है। वाराणसी में पशुपालन का व्यवसाय भी तेजी से बढ़ा है। लेकिन पशुओं के मरने के बाद उनके डिस्पोजल की व्यवस्था अब तक नहीं थी। पशुपालक या तो इन्हें सड़क या वरुणा नदी के किनारे फेंक देते थे। या चुपके से गंगा में विसर्जित कर देते थे, जिससे दुर्गंध के साथ साथ प्रदूषण भी फैलता था। मृत पशुओं को फेंकने को लेकर आये दिन सड़कों पर मारपीट तक की नौबत आ जाती थी। अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत अनिल कुमार सिंह बताते हैं कि 0.1180 हेक्टेयर जमीन पर 2.24 करोड़ की लागत से इलेक्ट्रिक पशु शवदाह गृह बनाया जा रहा है। ये शवदाह गृह बिजली से चलेगा। भविष्य में आवश्यकता अनुसार इसे सोलर एनर्जी व गैस पर आधारित करने का भी प्रस्ताव है। इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की क्षमता करीब 400 किलो प्रति घंटा के डिस्पोजल की है। ऐसे में एक घंटे में एक पशु का और एक दिन में 10 से 12 पशुओं का डिस्पोजल यहां किया जा सकेगा।
-डिस्पोजल के बाद बची राख से बनेगा खाद
पशुओं के शव के डिस्पोजल के बाद बची राख का इस्तेमाल खाद में हो सकेगा। पशुपालकों को और किसानों को डिस्पोजल और खाद का शुल्क देना होगा या ये सेवा निःशुल्क होगी, इसका निर्णय जिला पंचायत बोर्ड की बैठक जल्द तय होगा। मृत पशुओं को उठाने के लिए जिला पंचायत पशु कैचर भी खरीदेगा।
-वाराणसी में साढ़े पांच लाख पशु
मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी राजेश कुमार सिंह ने बताया कि जिले में करीब 5 लाख 50 हज़ार पशु हैं। आधुनिक इलेक्ट्रिक शवदाहगृह बन जाने से अब लोग पशुओं को खुले में नहीं फेकेंगे।
– धूमिल हो रही थी काशी की छवि
अध्यात्म, धर्म और संस्कृति की राजधानी वाराणसी का पर्यटन उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। पहले की सरकारों ने पशुओं के आश्रय स्थल और उनके मौत के बाद डिस्पोजल का कोई प्रबंध नहीं किया था। जिससे जल प्रवाह रुकने और खुले में पशुओं के फेंकने से दुर्गंध फैलने और प्रदूषण का खतरा रहता था। इससे देश व विदेश के पर्यटकों के बीच काशी की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल होती थी।