पशुधन को लंपी स्किन डिजीज से बचाने के लिए सरकार व प्रशासन सजग एवं सतर्क-उपायुक्त सिवाच
– पशुधन को लंपी चर्म रोग से बचाने के लिए सरकार व प्रशासन द्वारा जारी एडवाइजरी की पालना करें पशुपालक
-पशुपालक सावधानी बरतें और लंपी के लक्षण दिखने पर तुरंत अपने नजदीकी पशु चिकित्सकों से संपर्क करें
सोनीपत, 25 अगस्त। उपायुक्त ललित सिवाच ने कहा कि पशुपालकों को लंपी स्किन वायरस से घबराने की जरूरत नहीं है। पशुधन को लंपी चर्म रोग से बचाने के लिए सरकार व प्रशासन पूरी तरह सजग एवं सतर्क है। सरकार की ओर से एडवाइजरी जारी की गई है। पशुपालकों को चाहिए कि वे अपने पशुधन को लंपी चर्म रोग से बनाने के लिए सरकार व जिला प्रशासन द्वारा जारी की जा रही एडवाइजरी व हिदायतों की पूर्ण रूप से पालना करना सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि यह वायरस जनित रोग मुख्यत: गोवंश में पाया जाता है तथा भैंसों में यह रोग ना के बराबर है। इस वायरस का संक्रमण गर्म व नम मौसम में मक्खी, मच्छर व चीचड़ आदि के काटने से फैलता है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ पशु के संक्रमित पशु के सम्पर्क में आने से भी यह रोग हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह रोग पशुओं से मनुष्यों में नहीं फैलता।
लंपी स्किन रोग के लक्षण
उपायुक्त ने बताया कि लंपी स्किन डिजीज एक वायरल डिजीज है, जो पशुओं को प्रभावित करती है। आमतौर पर यह खून चूसने वाले कीड़ों, मच्छर की कुछ प्रजातियों और पशुओं के कीड़े के काटने से फैलती है। यह बीमारी संक्रमित पशु से दूसरे पशुओं में तेजी से फैल जाती है। इसकी चपेट में आने वाले पशुओं को बुखार आता है और मुंह व नाक से स्राव निकलना, खाल के नीचे छोटी-छोटी गांठें बनना, कुछ पशुओं में गले के नीचे, गादी, छाती व पैरों में सूजन आना, स्किन पर जगह-जगह निशान बन जाना लंपी स्किन डिजीज के मुख्य लक्षण हैं। उन्होंने बताया कि गंभीर स्थिति होने पर पशु मर भी जाते हैं।
लंपी स्किन बीमारी से ऐसे करें बचाव
उपायुक्त ने बताया कि इस बीमारी से बचने के लिए पशुओं को वैक्सीन लगवानी चाहिए। पशुओं के बाड़े को सूखा व साफ-सुथरा रखें, नियमित रूप से मक्खी व मच्छर रोधी दवाओं का प्रयोग करें, बीमार पशुओं के घावों की नियमित रूप से लाल दवाई व फिटकरी से सफाई करें, बीमार पशु से उत्पादित दूध का सेवन अच्छी तरह से उबाल कर करें, बीमार पशु के सम्पर्क में आने पर अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोएं। पशुओं को जोहड़, हौदी, मेलों आदि में लेकर न जाएं। एहतियात के तौर पर मृत पशुओं का निस्तारण 2 से 2.5 मीटर गहरा गढ्ढïा खोदकर करना चाहिए। मृत पशु को खुले में छोडऩे से अन्य स्वस्थ पशुओं में संक्रमण फैल सकता है। इसलिए स्वस्थ पशुओं को बीमार पशुओं से अलग रखें तथा रोग के लक्षण दिखाई देने पर अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।