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(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) जब राज कपूर शूटिंग के लिए सुबह-सुबह उठे…

एक लोकप्रिय और बड़े स्टार होने के बावजूद राज कपूर का व्यवहार सामान्यतः साधारण व्यक्ति जैसा ही रहता था। सेट पर कार्यरत सामान्य कर्मचारी से भी वे स्नेहपूर्वक बातचीत करते थे, लेकिन उनके मित्र और गीतकार शैलेन्द्र की फिल्म “तीसरी कसम” की शूटिंग के दौरान उसके कैमरामैन सुब्रतो मित्रा के साथ उनका मूड कभी-कभी खराब हो जाया करता था। इसके कुछ कारण थे। राज कपूर की आरके स्टूडियो के कैमरामैन राधू करमाकर के साथ अच्छी तालमेल थी। किसी और कैमरामैन के साथ उनकी पटरी बैठने में समय लगता था। सुब्रतो मित्रा सत्यजित रॉय के साथ काम किया करते थे। सत्यजित रॉय बहुत नियमबद्ध तरीके से काम करने के लिए प्रसिद्ध थे। सुब्रतो दा भी अनुशासित ढंग से काम करते थे। किसी शॉट के लिए लाइटिंग करने में भी उन्हें काफी समय लगता था। हालांकि यह अलग बात है कि हिंदी सिनेमा जगत में कैमरामैन को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है, लेकिन वे तीसरी कसम की यूनिट के महत्वपूर्ण सदस्य थे।

राज कपूर बड़े स्टार तो थे ही लेकिन उन्हें देर से उठने की आदत भी थी। सुबह नौ बजे वाली शिफ्ट में वे दोपहर दो बजे तक ही पहुंचते थे। “तीसरी क़सम” भी उनके लिए कोई अपवाद नहीं थीं। इन सब कारणों से तीसरी कसम के शुरुआती शूटिंग में सुब्रतो मित्रा और राज कपूर के बीच अक्सर खटपट हो जाया करती थी। नौटंकी के एक सीन की शूटिंग के समय तो ऐसी नौबत आ गई कि लगा अब राज कपूर सेट ही छोड़कर चल देंगे।

इस बीच एक दृश्य को सूर्योदय के समय फिल्माने की जरूरत महसूस हुई। राज कपूर सुबह जल्दी उठने के आदी नहीं थे, यह बात सुब्रतो दा जानते थे, परंतु मध्य प्रदेश में शूटिंग के दौरान यह दृश्य राज कपूर पर सुबह के समय फिल्माना आवश्यक था।

आखिर सुब्रतो दा को शैलेंद्र से यह बात कहनी पड़ी क्योंकि उन्हें लगा शायद शैलेंद्र के कहने पर राजजी सुबह जल्दी शॉट देने के लिए राजी हो जाएं, लेकिन शैलेंद्र जी का जवाब कि आप तो जानते ही हैं, राजजी दोपहर दो बजे से पहले कभी शूटिंग के लिए नहीं आते, फिर यह शॉट कैसे किया जा सकता है? सुब्रतो दा चुप रह गए, लेकिन दोनों के बीच हुई यह बातचीत किसी ने जाकर राजजी को बता दी। एक दिन शाम को पैकअप के बाद सुब्रतो मित्रा अपने सहयोगियों को कुछ निर्देश दे रहे थे कि राज कपूर उनके पास आए।

“आप मुझ पर सूर्योदय के समय एक शॉट फिल्माना चाहते हैं।” उन्होंने सुब्रतो दा से पूछा। “जी हां… पर कोई बात नहीं, मैं शाम के समय इन्हें लेकर काम चला लूंगा, सुबत्रो दा ने जवाब दिया।

“नहीं अगर आप चाहें तो मैं सुबह शॉट देने के लिए आ सकता हूं”, राजकपूर ने कहा। सुब्रतो दा को तो विश्वास ही नहीं हुआ। खुशी से गदगद दादा अगले दिन तड़के चार बजे फिल्म के सहायक निर्देशक बीआर इशारा के साथ लोकेशन पर पहुंचे और उन्होंने शॉट की तैयारी शुरू कर दी लेकिन सबके मन में फिर भी एक आशंका थी कि क्या राज कपूर सचमुच इतनी सुबह सेट पर आएंगे? लेकिन यह क्या…चमत्कार… ठीक 4ः30 बजे सुबह राज कपूर सेट पर हाजिर थे। “गुड मॉर्निंग सुब्रतो, कैमरा सेट अप कर लिया?”

जी, सब कुछ तैयार है।”

“चलो जी, बताओ मेरा क्या शॉट है?” राजजी ने बीआर इशारा से पूछा। सूर्योदय होने ही वाला था।

इशारा ने सीन समझाया। सुब्रतो मित्रा कैमरे के पीछे तैयार थे।

“स्टार्ट कैमरा… एक्शन….” इशारा के ये शब्द सुनते ही सुब्रतो दा ने कैमरा चालू किया, लेकिन यह क्या… पता चला कि कैमरे का लेंस जूम ही नहीं हो रहा। अचानक ऐसा कैसे हो गया, कोई कुछ समझ ही नहीं पाया और शूटिंग रोक देनी पड़ी। काफी देर बाद वह तकनीकी खराबी दूर तो हो गई, पर तब तक धूप निकल आई थी। अब सूर्योदय का शॉट लेना संभव नहीं था। सुब्रतो मित्रा ने सोचा कि अब राज कपूर नाराज होकर कुछ कहेंगे, पर वे शांत खड़े थे। “कोई बात नहीं। यह शॉट हम कल लेंगे।” यह कह कर वे चले गए। दूसरे दिन सुबह फिर शॉट की तैयारी की गई। सुब्रतो मित्रा ने दस बार लेंस की जांच की कि कल जैसा हाल न हो। राज कपूर सुबह ठीक 4ः30 बजे लोकेशन पर हाजिर हो गए। शूटिंग आरंभ हुई और मनमाफिक शॉट ले लिया गया। बिना किसी नाराजगी के राज कपूर दो दिन लगातार सुबह-सुबह शूटिंग पर हाजिर हुए, यह बात यूनिट में क्या फिल्म नगरी बंबई में भी अनेक दिन चर्चा का विषय बनी रही।

चलते-चलते

तीसरी कसम के निर्देशक बासु भट्टाचार्य जी ने पहले फिल्म के हीरो हीरामन के लिए महमूद का चुनाव किया था, लेकिन एक दिन जब शैलेंद्र और राज कपूर की मुलाकात हुई तो राज कपूर ने कहा कि आपकी फिल्म का हीरामन मैं ही हूं तो शैलेंद्र चकित रह गए और तुरंत बोले लेकिन राज जी मैं आपकी कीमत नहीं चुका सकता। शैलेंद्र की इस बात पर राज कपूर मुस्कुराए और बोले एक रुपये तो दे सकते हो? शैलेंद्र को लगा राज कपूर मजाक कर रहे हैं लेकिन फिर भी उन्होंने कहा जी एक रुपया तो दे सकता हूं।” तो फिर तय रहा की तुम्हारा हीरामन अब मैं ही हूं।” और शैलेंद्र ने अपनी पैंट की जेब से एक रुपया निकालकर राज जी के हाथ पर रख दिया।

(लेखक, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)

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