उत्तर प्रदेश

माता छतर कुंवर के नाम पर नवाब ने करवाया था छतर मंजिल का निर्माण

विश्व धरोहर सप्ताह के उपलक्ष्य में

लखनऊ, 22 नवम्बर । लखनऊ की छतर मजिल अपनी खूबसूरती के लिए पूरे देश में तो क्या, शायद पूरी दुनियां में जानी जाती है। एक ओर जहां अपनी शान-शौकत के कारण यह इमारत बेगमों का निवास बनी थी वहीं यह 1857 के स्वतंत्रत संग्राम की यह गवाह भी रही है।

इस इमारत पर लगे शिलालेख के मुताबिक यह इमारत इन्डों-इटालियन स्थापत्य शैली की एक बेजोड़ नमूना है। अवध के नवाब सआदत अली खां ने छतर मंजिल का निर्माण साल 1798 से 1814 के बीच अपनी माता छतर कुंअर के नाम पर करवाना शुरू किया था लेकिन बादशाह गाजीउद्दीन हैदर ने साल 1814 से 1827 के बीच इसे पूरा करवाया था। उसके बाद नवाब नासिररूद्दीन हैदर ने 1827 से 1837 में इसे पर्याप्त रूप से अलंकृत किया था।

कहा जाता है कि इमारत की भूतलों की दीवारों पर गोमती का पानी टकराता रहता था जिससे भूतल के भवनों में पर्याप्त ठंडक मिला करती थी। शायद इसी वजह से ही अवध की बेगमेें इस खूबसूरत इमारत में निवास करती थी।

यह भी कहा जाता है कि अपने सिंहासन आरोहण के समय जब नवाब ने छत्र धारण किया था, तभी इसी मंजिल के कंगूरे पर एक छत्र लगवाया था। लखनऊ के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ( 1847 से 1856 के बीच ) तक यह महल शाही निवास के लिए ही उपयोग में होता रहा है। लेकिन 1857 में स्वतत्रता संग्राम के समय छतर मंजिल का उपयोग क्रांतिकारियों ने भी किया था।

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