उत्तर प्रदेश

वेदांत से परिचित हुए बिना उसके मर्म को जानना मुश्किल- आचार्य प्रशांत

बिजनौर, 10 सितंबर। प्रख्यात लेखक, वेदान्त मर्मज्ञ, पूर्व सिविल सेवा अधिकारी एवम प्रशान्त अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापकआचार्य प्रशांत का कहना है कि भागवत पुराण सभी 18 पुराणों में सर्वाधिक प्रचलित व सम्मानित पुराण है। इसके रचियता वेदव्यास माने जाते हैं, जिन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता की रचना की है। इस पुराण में वेदों और उपनिषदों के गूढ़ सिद्धांतों को जिन्हें सूत्रों के द्वारा भी कहना मुश्किल होता है, सरल कहानियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है। कथाओं में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाएँ, गोपियों और माता यशोदा संग उनकी नटखट शरारतें व उनके बालपन के अनेक प्रसंग वर्णित हैं, जिनमें चमत्कारों का बाहुल्य है।

सभी कहानियाँ मीठी व मनभावन हैं, पर इन कथाओं का मर्म मात्र उतना ही नहीं है जितना साधारण दृष्टि से दिखाई देता है। ये कथाएँ और प्रसंग सशक्त प्रतीक हैं, जो वेदान्त के गूढ़ रहस्यों और सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं।

परम्परागत रूप से बहुधा भागवत पुराण के मर्म को न समझकर, इन गूढ़ कथाओं का अधिकतर सतही अर्थ ही किया गया है। चमत्कारों आदि को तथ्यगत व भौतिक प्रामाणिकता दे दी गई है। फलस्वरूप विवेक और बोध पर चलने वाले लोग ग्रंथों से और दूर हुए हैं, और जनसाधारण भी पौराणिक साहित्य के वास्तविक उद्देश्य से वंचित-सा ही रह गया है। कथाएँ प्रचलित हो गई हैं, अर्थ छुपे रह गए हैं। समझना ज़रूरी है कि वेदांत से परिचित हुए बिना पौराणिक कथाओं का सही अर्थ कर पाना असंभव है।

आचार्य प्रशांत ने इस पुस्तक में भागवत पुराण की चुनिंदा कथाओं की वेदांतसम्मत व्याख्या प्रस्तुत की है। ”भागवत पुराण” की यह व्याख्या आपके लिए एक अवसर है इन पौराणिक कहानियों को वेदांत की दृष्टि से देखने व उनके सच्चे व उदात्त अर्थों से परिचित होने का लाभ लें। आचार्य प्रशान्त बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 12,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं। आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं।

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