हरियाणा

गुरुग्राम: शिक्षकों को परीक्षा में कठिन सवाल पूछने की मानसिकता बदलनी होगी: प्रो. दिनेश सिंह

-एसजीटी विवि में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कही यह बात

गुरुग्राम, 20 जुलाई। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं वर्तमान में सेंटर फॉर लेटरल इनोवेशन, क्रिएटिविटी एंड नॉलेज के निदेशक प्रो. दिनेश ङ्क्षसह ने कहा कि एनईपी की शिक्षा को हमेशा आसन बनाना चाहिए ना कि जटिल। परीक्षाओं में जटिल प्रश्न पूछना शिक्षाविदें की एक सामान्य मानसिकता है। शिक्षकों को परीक्षा के इस मानसिकता से ऊपर उठने की आवश्यकता है। यह बात उन्होंने यहां एसजीटी यूनिवर्सिटी में बुधवार को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कही।

इस सम्मेलन का विषय रहा-गांधी की शिक्षा की अवधारणा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: विचार, अवसर और कार्यान्वयन। छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा के विभिन्न विषयों को एकीकृत करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए प्रो. सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस पर जोर देती है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का हमेशा यह विचार था कि बिना क्रिया के ज्ञान व्यर्थ है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह भी कहती है कि कार्य परियोजनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो. सचिदानंद जोशी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मेंबर सेक्रेटरी ने कहा कि संस्कृति का महत्व शिक्षा से भी अधिक है तथा प्राचीन काल में शिक्षा का अर्थ संस्कृति ही हुआ करता था परंतु आज हालात इस कदर हो गई हो गए हैं कि हम इसी बात में संतोष कर लेते हैं कि हमने संस्कृति को शिक्षा में शामिल किया है।

संरचना फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक अमोघ राय ने कहा कि महात्मा गांधी की शिक्षा की आवधारणा शोध किया और उन्होंने पाया कि एनईपी के माध्यम से गांधी के शिक्षा की आवधारणा को व्यवहार में लाने में राष्ट्र को 70 साल लग गए। एसजीटी विश्वविद्यालय के मैनेजिंग ट्रस्टी मनमोहन सिंह चावला ने प्रो. दिनेश सिंह और प्रो. सच्चिदानंद जोशी का अभिनंदन किया। पहले दिन कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए एसजीटी विश्वविद्यालय के प्रो-चांसलर प्रो राकेश कुमार शर्मा ने अटल इनोवेशन सेंटर और क्लिक सहित विश्वविद्यालय द्वारा की गई विभिन्न पहलों का विवरण दिया। इस सम्मेलन के पहले दिन के अन्य सत्रों की शुरुआत एसजीटी विश्वविद्यालय के प्रो. वाइस चांसलर प्रोफेसर विनोद कुमार व प्रो. विकास धवन तथा सलाहकार प्रो. सुमेर सिंह के वक्तव्य से हुई। इस सम्मेलन में कर्नल पार्थ प्रतिम दुबे, प्रो. आनंद प्रकाश, प्रो. सीमा बावा, प्रो. संतोष राय, डॉ. वीरेंद्र मिश्रा, प्रो. मदन मोहन चतुर्वेदी, प्रो. शोभा बगई, प्रो. ज्योति शर्मा, प्रो. जवाहर लाल कौल, प्रो. सीबी शर्मा और प्रो. पुष्पेश पंत ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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