भारत को फिर से विश्व गुरु के पद पर अधिष्ठित करेगी नई शिक्षा नीति : नरेंद्र सिंह तोमर
– जब प्रक्रिया पूर्ण होगी तो परिवर्तन को कोई रोक नहीं सकता : अरुण कुमार
– भारत भूमि से करुणा का वैश्वीकरण होगा : कैलाश सत्यार्थी
– शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ज्ञानोत्सव का शुभारंभ
नई दिल्ली, 17 नवंबर। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने गुरुवार को कहा कि नई शिक्षा नीति आने वाले कल में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देगी। साथ ही जब देश की आजादी 100 वर्ष की होगी तब यही शिक्षा नीति पुन: भारत को विश्वगुरु के पद पर अधिष्ठित करने में भी सफल होगी।
केंद्रीय मंत्री तोमर यहां भारतीय कृषि संस्थान (पूसा) में ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ द्वारा शिक्षा से आत्मनिर्भर भारत की थीम पर आयोजित तीन दिवसीय ‘ज्ञानोत्सव-2079’ के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
अध्यक्षीय उद्बोधन में केंद्रीय मंत्री ने मनुष्य के जीवन में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि शिक्षा प्रगति का उपकरण है, लेकिन यदि इसकी दिशा ठीक न हो तो उसका नुकसान भी देश और समाज को उठाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आजादी के तत्काल बाद जो दिशा निश्चित होनी चाहिए थी, वह नहीं हुई। इसके चलते हमारा निज गौरव, देशज पद्धतियां व परंपराएं प्रभावित हुईं। उन्होंने कहा कि शिक्षा रोजगारोन्मुखी के साथ-साथ राष्ट्रोन्मुखी और संस्कारोन्मुखी भी होनी चाहिए। इस दिशा में भारतीय मनीषियों ने समय-समय पर मंथन किया और जरूरी सुझाव दिए हैं।
उन्होंने कहा कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के गठन से पहले शिक्षा बचाओ आंदोलन कार्य कर रहा था। शिक्षा का दीप जलाने वाला यह आंदोलन शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन कर पाया है। अब उसका क्रियान्वयन होगा। यह नई शिक्षा नीति हमें विश्व गुरु के पद पर प्रतिष्ठित करेगी।
अपने उद्बोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह अरुण कुमार ने भारत की 1000 वर्षों की यात्रा, स्वाधीनता से स्वतंत्रता की 75 वर्ष की यात्रा और देश में हो रहे परिवर्तन की चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की शिक्षा कैसी हो इसका चिंतन बहुत समय से चल रहा है। चिंतन समग्र हो यह सब चाहते हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया नहीं है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने यह काम किया। देशभर में घूमकर विभिन्न विषयों पर काम करने वाले लोगों को चिन्हित कर एकत्रित किया। दूसरे चरण में सभी ने एक साथ मिलकर सोचने का काम किया। यह तीसरा चरण है। सभी लोगों ने जब सोचना शुरू किया और जो निष्कर्ष निकले उसका अनुभव लेकर क्रियान्वयन करना। उन्होंने कहा कि सरकार ने नीति बना दी लेकिन क्रियान्वयन समाज को करना है। इस दिशा में आगे बढऩा है तो प्रयोग करना पड़ेगा। आज का ज्ञानोत्सव इस दिशा में परिणीति की ओर पहुंचाते हुए परिणाम की ओर आगे बढ़ेगा। यह कार्यक्रम विशिष्ट पृष्टभूमि में हो रहा है। देश में निरंतरता है। समान मूल्य, समान संस्कृति, समान जीवन पद्धति। एक राष्ट्र, एक जीवन। एक राष्ट्र, एक संस्कृति। एक राष्ट्र, एक समाज दिखाई देगा। इसके लिए हम सभी को अपनी शिद्दता बढ़ानी होगी। परिवर्तन की इच्छा रखिए, परिवर्तन के लिए काम मत करिए, क्योंकि प्रक्रिया पूरी किए बिना हम काम करते हैं तो परिणाम नहीं आता। यह बीज से वृक्ष की यात्रा है। पेड़ से पेड़ उगाने की नहीं। जब प्रक्रिया पूर्ण होगी तो परिवर्तन को कोई रोक नहीं सकता है।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित समाजसेवी कैलाश सत्यार्थी ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यह ज्ञानोत्सव नहीं, बल्कि ज्ञान यज्ञ है। यहां मौजूद लोग नई शिक्षा नीति को लोगों तक पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं। ये नए भारत के निर्माता हैं। आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, समावेशी, उद्यमी और जगतगुरु भारत के निर्माता हैं। यह शिक्षा पद्धति बड़े बदलाव वाली शिक्षा पद्धति है। हमारी शिक्षा सिर्फ जानकारी, सूचना, डेटा तक सीमित नहीं। हमारा शिक्षक गुरु है और गुरु का अर्थ अंधरे से उजाले की ओर ले जाने वाला। हमारी शिक्षा के साथ संस्कार जुड़े हैं। संस्कृति जुड़ी है, सांस्कृतिक मूल्य जुड़े हैं और धर्म जुड़ा है। यह किसी धर्म या मजहब की बात नहीं है। शिक्षा हमारे धर्म का हिस्सा है। धार्मिक होने के लिए शिक्षित होना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कार की विशेषता है कि अहं (मैं) की जगह हम वयं (हम सब) कहते हैं। हमारी पूरी यात्रा वैश्विक यात्रा है और इसमें शिक्षा का योगदान प्रमुख है। हमारी शिक्षा और संस्कार जोडऩे का काम करते हैं। हजारों साल पहले से यह परंपरा चली आ रही है। हजारों साल पहले हमारे ऋषियों ने यह ज्ञान दिया है। आज दुनिया में सब चीजों का वैश्वीकरण कर दिया गया है। लेकिन गंगा, यमुना, कावेरी, हिमालय, कन्याकुमारी वाला भारत वो भूमि है, जहां से करुणा का वैश्वीकरण होगा।
प्रारंभ में स्वागत भाषण ज्ञानोत्सव आयोजन प्रभारी डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने दिया। उन्होंने कहा कि हम सब शिक्षा के क्षेत्र में ताकतवर फसल के निर्माण का कार्य कर रहे हैं। शिक्षा में परिवर्तन लाने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन ज्ञानोत्सव के माध्यम से सार्थक सिद्ध होगा।
ज्ञानोत्सव की संकल्पना प्रस्तुत करते हुए न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि न्यास का ध्येय वाक्य है- देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा। जैसा देश, समाज, नागरिक चाहिए, वैसी ही शिक्षा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई है उसके क्रियान्वयन में समाज की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। लोकतंत्र में सरकार और समाज मिलकर सामूहिक प्रयास करेंगे तो सफलता निश्चित है।