माँ की कोख से बड़ी कोई कक्षा नहीं होती : श्याम स्वरूप
सुलतानपुर, 16 अक्टूबर। समर्थ शिशु श्री रामकथा में कथा व्यास पंडित श्याम स्वरूप मनावत ने रविवार को कहा कि मां की कोख से बड़ी कोई कक्षा नहीं होती है। मां का गर्भ अपने आप में एक विश्वविद्यालय है। नौ महीने का गर्भकाल जन्म के उपरांत उन्नीस वर्षों की शिक्षा से भी महत्वपूर्ण होता है।
नगर के सरस्वती मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, विवेकानंद नगर में पांच दिवसीय समर्थ शिशु श्री रामकथा का आयोजन हो रहा है। शिशुओं के विकास को केंद्रित श्रीराम कथा के दूसरे दिन रविवार को पंडित श्याम स्वरूप मनावत ने कहा कि भक्त प्रहलाद ने भगवान नारायण की भक्ति अपनी मां कायाधु के गर्भ से ली थी। देव ऋषि नारद ने देवी कायाधु को भगवान विष्णु का चरित्र सुनाया तो गर्भस्थ प्रहलाद ने भी उसे सुन लिया। वीर अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन करना सीख लिया।
पुराणों के प्रसंग बताते हैं कि माँ की कुक्षी (कोख) से बड़ी कोई कक्षा हो नहीं सकती। माँ का गर्व अपने आप में एक विश्वविद्यालय है। जन्म लेने वाली से संतान श्रेष्ठ बने, समर्थ बने, संस्कारवान बने, बलवान बने, यशस्वी और तेजस्वी हो। इसके लिए माता-पिता, को क्या-क्या करना चाहिए। इसी विषय को प्रतिपादित करती है यह कथा है।
समर्थ श्री रामकथा में यह समझाया कि संतान का जन्म केवल संयोग से नही अपितु सुयोग से होना चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ संतान प्राप्ति के लिए माता-पिता के अंतःकरण पवित्र होना चाहिए, क्योंकि बिना शुद्धि के सिद्धि प्राप्त नहीं होती। कथा में शिशु भारती के क्षेत्रीय प्रमुख विजय उपाध्याय, व्यापारी व भाजपा नेता आलोक आर्य, सभाजीत वर्मा, विनय श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।