राष्ट्रीय

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान डा. मोहन गोपाल ने गिनाईं ईडब्ल्यूएस आरक्षण की खामियां

नई दिल्ली, 13 सितंबर। प्रख्यात अकैडमिशियन प्रोफेसर डॉ. मोहन गोपाल ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध करते हुए कहा कि यह आरक्षण के मतलब को ही उलट देगा। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच के समक्ष दलीलें रखते हुए प्रोफेसर गोपाल ने कहा कि आरक्षण सामाजिक और पिछड़े वर्ग के आर्थिक उत्थान के लिए है लेकिन ईडब्ल्यूएस में उन वर्गों को बाहर कर दिया गया है।

सुनवाई के दौरान प्रोफेसर गोपाल ने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान के समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए लाया गया 103वां संशोधन संविधान पर हमला है। उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पहले जो आरक्षण मौजूद था, उसमें जातीय पहचान आधार नहीं था बल्कि वह सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व की कमी के आधार पर था लेकिन 103वें संशोधन के बाद ईडब्ल्यूएस कोटे में पिछड़े वर्ग के लोगों को शामिल नहीं किया गया है। ईडब्ल्यूएस आरक्षण केवल अगड़े वर्ग के लिए है।

आठ सितंबर को कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए बिंदु तय किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो ये विचार करेगा कि क्या संविधान में 103वां संशोधन मूल ढांचे के विरुद्ध है, जिसने सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण की शक्ति दी। कोर्ट यह भी तय करेगा कि क्या इस संशोधन ने गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थान में दाखिले के नियम बनाने की शक्ति दी। इसके अलावा यह कि क्या 103वें संशोधन के जरिए ओबीसी, एससी-एसटी को शामिल नहीं कर संविधान की मूल भावना का उल्लंघन किया गया।

चीफ जस्टिस यूयू ललित के अलावा इस संविधान बेंच ने जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट, जस्टिस बेला में त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल हैं। याचिका में 2019 में ईडब्ल्यूएस आरक्षण कानून को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने इस मामले में चार वकीलों को नोडल वकील नियुक्त किया है, जो ईडब्ल्यूएस आरक्षण और मुस्लिमों को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में आरक्षण देने वाली याचिकाओं में समान दलीलों पर गौर करेगी। कोर्ट इन दोनों मामलों पर सुनवाई करने के बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में सिखों को अल्पसंख्यक आरक्षण देने के मामले पर भी विचार करेगा। इसके अलावा संविधान बेंच सुप्रीम कोर्ट की अपीलीय और संविधान बेंचों में विभाजन करने और सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय बेंच बनाने की मांग पर भी सुनवाई करेगी। संविधान बेंच ने ये साफ किया कि सबसे पहले वो आरक्षण के मसले की सुनवाई करेगी, क्योंकि इनमें कई मसले एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

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