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जमीन का टुकड़ा और टुकड़ों लोग

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

खाना धर्म है, खाना कर्म है, खाना ही सब तप।

जो यह समझे ज्ञानी होवै, वरना जीवन जाए खप।।

कुछ समझे मैं क्या कहना चाहता हूँ? बड़े बाबू ने क्लर्क से कहा। क्लर्क हक्का-बक्का मुँहबाए खड़ा था। यह देख बड़े बाबू ने कहा – यही कारण है कि तुम मूरख के मूरख रह गए। इतनी सी बात भी नहीं समझते। हम भ्रष्टाचार निरोधक विभाग में काम करते हैं। हमारी ईमानदारी कइयों की दुकानें बंद करवा सकती है। हमें तो केवल उन लोगों को पकड़ना है जिनका सरकार से छत्तीस का आंकड़ा है। औरों से हमारे संबंध ‘आप जियो हमें भी जीने दो’ जैसा होना चाहिए। यहाँ काम करने का मतलब यह नहीं कि हम संन्यासी बने रहें। हमारे भी नाक, मुँह, कान, आँख और त्वचा होती है। हम भी मिर्च-मसाला खाते हैं। हममें भी इच्छाएँ पैदा होती हैं। हमारा भी परिवार होता है। हमारी भी जरूरतें होती हैं। सरकारी वेतन से भला क्या गुजर बसर हो पाएगा। इन्हें पूरा करने के लिए ‘खाना’ आना चाहिए। खाना ही हमारा धर्म, कर्म और तप होना चाहिए। इसलिए चुपचाप जाओ और बाहर खड़े महाशय को मेरे पास भेजो।

क्लर्क बाहर गया। महाशय भीतर आए। बड़े बाबू ने उन्हें ऊपर से नीचे तक तीन-चार बार निहारा। फिर कहा – तो तुम्हीं ने जमीन छुड़ाने के एवज में विधायक, पार्षद, पुलिस, राजस्व अधिकारियों द्वारा रिश्वत माँगने की शिकायत दर्ज कराई है। तुम बड़े किस्मत वाले हो कि उन्होंने सिर्फ रिश्वत माँगी है, ली नहीं है। ऐसे लोगों के हाथों से भगवान की जमीन तक नहीं बच सकती, तब तुम्हारी क्या बिसात? अब जब तुमने शिकायत दर्ज करवा ही दी है, तो निश्चिंत रहिए, हम हरसंभव न्याय करेंगे।

महाशय हाथ जोड़ते हुए – साहब आपकी बड़ी कृपा होगी। इन लोगों ने न केवल मेरी जमीन हथिया ली है, बल्कि उसे लौटाने के एवज में भारी भरकम रकम की डिमांड भी रख दी है। आए दिन डरा धमका रहे हैं। जीना दुश्वार कर रखा है। अब आप ही बताएँ मैं करूँ तो क्या करूँ? मैंने यह जमीन दिन-रात मेहनत करके कमाई है। वैसे आपको इन लोगों में सबसे बड़ा दोषी कौन लगता है? विधायक, पार्षद, पुलिस या फिर राजस्व अधिकारी?  

बड़े बाबू गुस्से में आते हुए बोले – तुम्हें शर्म नहीं आती समाज के इन शरीफ लोगों पर आरोप लगाते हुए? इन लोगों की ईमानदारी से ही तो यह व्यवस्था चल रही है। ये न होते तो क्या से क्या हो जाता? इस टंटे की फसाद है जमीन। वह जमीन जिसे आप अपना बता रहे हैं। वह आपकी है भी या नहीं यह तो जाँच के बाद ही पता चलेगी। यदि मान भी लें कि वह जमीन आपकी है तो केस उल्टे आप पर दर्ज होगा। आपको बताना पड़ेगा कि आपने जमीन कब खरीदी? खरीदी तो खरीदी यही जमीन क्यों खरीदी? किसी को डरा-धमकाकर खरीदी या फिर जमीन में गड़े गुप्त खजाने के लिए खरीदी? खरीदने के लिए पैसे का जुगाड़ कैसे किया? जुगाड़ के लिए जुटाई गई रकम ब्लैक थी या वाइट? तुमने चोरी तो नहीं की या फिर डाका तो नहीं डाला? क्या तुमने आयकर विभाग में इस जमीन के बारे में सूचना दी भी है या नहीं? वहाँ से क्लीयरेंस ली भी है?

यह सब सुन महाशय के होश उड़ गए। वह वहीं पछाड़ खाकर गिर गया।      

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