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अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव एवं भारत की सच्चाई

डॉ. विश्वास चौहान

दुनिया के कई देशों में कुछ वामपंथी एनजीओ हैं। यह समय-समय पर टार्गेटेड (लक्षित) देशों की स्थिति पर प्रतिवेदन यानी रिपोर्ट प्रकाशित करते हैं । टार्गेटेड देशों के वामपंथी उनके वैचारिक राजनीतिक दल उन रिपोर्ट्स को “वोट ठगी” (लोकतंत्रघाती अपराध) के लिए जोर-शोर से प्रचार करते हैं। सरकारों को घेरते हैं ।इस तथ्य का एक उदाहरण देखिए। अभी हाल ही में एक एनजीओ के अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार सूचकांक के अनुसार वर्ष 2013 में 177 देशों की सूची में भारत 94 वें पायदान पर था। यह इस वर्ष जारी सूचकांक में (मोदी सरकार के समय में) 180 देशों की सूची में 85 वें पायदान पर पहुंच गया है। यद्यपि यह अच्छी बात है कि इस सूचकांक की सोशल मीडिया पर पोल खुलने के भय से भारतीय मीडिया ने इसे इग्नोर कर दिया है ।

इस रिपोर्ट में भ्र्ष्टाचार के मामले में चीन 66 वीं सीढ़ी पर है। यह रिपोर्ट नैरेटिव स्थापित करने का प्रयास करती है कि भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि भारत के लोकतांत्रिक स्टेटस पर प्रश्नचिह्न है। सरकार के विरुद्ध बोलने वाले एनजीओ को सुरक्षा, मानहानि, देशद्रोह, अभद्र भाषा और अदालत की अवमानना के आरोपों और विदेशी फंडिंग पर नियमों के साथ निशाना बनाया गया है। लेकिन यही रिपोर्ट चीन में भ्रष्टाचार कम होने की प्रशंसा करती है और उस देश में “लोकतंत्र” की अनुपस्थिति को ही इग्नोर कर देती हैं। साथ ही यह कहा गया है कि चीन में एनजीओ और स्वतंत्र प्रेस के न होने से भ्रष्टाचार विरोधी प्रहरी के रूप में काम करना असंभव हो जाता है। फिर भी चीन, भारत से अच्छा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वामपंथी कैसे नैरेटिव गढ़ते हैं ।

मेरा मानना है कि वैश्विक संगठन संयुक्त राष्ट्र की किसी भी अधिकृत रिपोर्ट को पढ़ लीजिये। लिखा होता है कि किसी भी राष्ट्र को निर्धनता हटाने के लिए आय, घर, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, बिजली-पानी, भोजन उपलब्ध करवाना, कानूनी पहचान दिलवाना, एवं कुपोषण समाप्त करना इत्यादि विषयों पर कार्य करना होगा। केवल आय बढ़ा देने से निर्धनता गायब नहीं हो जाएगी। इस सप्ताह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक लेख में आंकड़ों द्वारा साबित किया गया है कि भारत से भीषण निर्धनता समाप्त (जनसंख्या का एक प्रतिशत के नीचे) हो गई है। साथ ही भारत में असमानता वर्ष 2017 से कम हो रही है तथा वर्ष 1993/94 के बाद सबसे निचले स्तर पर है। इस रिपोर्ट के लेखक संयुक्त राष्ट्र संघ में कार्यरत सुरजीत भल्ला, अरविन्द विरमानी एवं करण भसीन हैं। इन तीनों ने भारत में निर्धनता उन्मूलन एवं असमानता कम होने के लिए मोदी सरकार की नीतियों की प्रशंसा प्रमाण और तथ्यात्मक आंकड़ों सहित की है । इस सबके बावजूद यह भी सर्वविदित है कि मोदी सरकार के निर्धनता एवं आर्थिक असमानता को कम करने के प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्वैच्छिक संगठन जानबूझकर संज्ञान में नहीं लेते, क्योंकि वहां अनेक भारत विरोधी वामपंथी बड़ी संख्या में पुरानी सरकारों ने पाले हुए हैं ।

आज जिस निर्धन को घर मिल रहा है, वह उसी समय दो-तीन लाख की संपत्ति का ‘लखपति’ स्वामी हो जाता है। जब उस घर में बिजली, नल से जल, शौचालय की व्यवस्था की जाती है तो वह बहुआयामी निर्धनता को समाप्त करने में मदद करता है। लगभग सभी नागरिकों के पास बैंक अकाउंट है। एक वैधानिक पहचान (आधार) है। मुद्रा लोन इत्यादि से करोड़ों नागरिको को धन दिया जा रहा है। आयुष्मान से स्वास्थ्य संकट के समय वित्तीय मदद दी जा रही है। अपनी योजनाओं से प्रधानमंत्री मोदी वृहद स्तर पर धन का ट्रांसफर निर्धनों की तरफ कर रहे है। अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव गढ़ने के बाद भी जनता से ठुकराए कुछ परिवारवादी “वोट ठग” भारत में मोदी सरकार का कुछ बिगाड़ नही पा रहे हैं। मगर इस अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव को समझने के लिए लगातार अध्ययन जरूरी है ।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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