धनतेरस शनिवार को, इस तिथि में करना चाहिए यम के निमित्त दीपदान
लखनऊ, 21 अक्टूबर। धनतेरस शनिवार को है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की तेरस को धनतेरस कहा जाता है। यह दीपावली के दो दिन पहले मनाई जाती है। इस तिथि में शाम को सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त दीपदान करने की परम्परा है। इसके अलावा लोग बर्तन या चांदी-सोने के बने गहने या सिक्के खरीदते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ये चीजें खरीदने से धन-समृद्वि बढ़ती है। अखण्ड दीपक जलाने से धन की प्राप्ति होती है।
लोक परम्परा है कि इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त दीपदान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। इसके अलावा इस तिथि में अखण्ड दीपक जलाने से धन की प्राप्ति होती है।
भारतीय ज्योतिष अनुसन्धान संस्थान के निदेशक आचार्य विनोद कुमार मिश्र बताते हैं कि वर्ष में एकमात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा सिर्फ दीपदान करके की जाती है। कुछ लोग नरक चतुर्दशी के दिन भी दीपदान करते हैं। उन्होंने बताया कि स्कंदपुराण में लिखा है-
‘कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे। यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति।।
अर्थात कार्तिक मासके कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन सायंकाल में घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है। पद्मपुराण के अनुसारः-
‘कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके। यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।।‘
अर्थात कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को घर से बाहर यमराज के लिए दीप देना चाहिए इससे दुर्गम मृत्यु का नाश होता है।
यम-दीपदान की विधि
पं विनोद ने बताया कि यम दीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए आटे का एक बड़ा दीपक लें। गेहूं के आटे से बने दीप में तमोगुणी ऊर्जा तरंगे एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगों (अल्पमृत्यु के लिए ये तरंगे कारणभूत होती हैं) को शांत करने की क्षमता रहती है। तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं बना लें। उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुंह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें। प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें। उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी सी खील अथवा गेहूं से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है। दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा (दक्षिण दिशा यम तरंगों के लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशा से यम तरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं) की ओर देखते हुए चार मुंह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें। यह मंत्र ‘ॐ यमदेवाय नमः ’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें ।
यम दीपदान का मन्त्र
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम।।
इसका अर्थ है, धनत्रयोदशी पर यह दीप मैं सूर्यपुत्र को अर्थात् यम देवता को अर्पित करता हूं । मृत्यु के पाश से वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें।
पं. विनोद मिश्रा ने बताया कि निर्धनता दूर करने के लिए अपने पूजाघर में धनतेरस की शाम को अखंड दीपक जलाना चाहिए, जो दीपावली की रात तक जरूर जलता रहे। अगर दीपक भैयादूज तक अखंड जलता रहे तो घर के सारे वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं। घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक जलाएं। बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें साथ ही दिये में थोड़ी सी केसर भी डाल दें। घर के तेल का दीपक प्रज्वलित करें तथा उसमें दो काली गुंजा डाल दें, गन्धादि से पूजन करके अपने घर के मुख्य द्वार पर अन्न की ढ़ेरी पर रख दें। साल भर आर्थिक अनुकूलता बनी रहेगी। स्मरण रहे वह दीप रात भर जलते रहना चाहिये, बुझना नहीं चाहिये।
दीपावली पर लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय
उन्होंने बताया कि साधक दक्षिणावर्ती शंख, केसर, गंगाजल का पात्र, धूप, अगरबत्ती, दीपक, लाल वस्त्र रख लें। साधक अपने सामने लक्ष्मीजी की फोटो रखें तथा उनके सामने लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर दक्षिणावर्ती शंख रख दें। उस पर केसर से स्वस्तिक बना लें। उस पर कुमकुम से तिलक कर दें। बाद में स्फटिक की माला से निम्न मंत्र की सात मालाएं करें। तीन दिन तक करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्रजाप पूरा होने के पश्चात् लाल वस्त्र में शंख को बांधकर घर में रख दें। जब तक वह शंख घर में रहेगा, तब तक घर में निरंतर उन्नति होती रहेगी। इसका मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी कुबेराय मम गृहे स्थिरोभव ह्रीं ॐ नमः है।