लाला लाजपत राय की 94वीं पुण्यतिथि पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन
बेतिया, 17 नवंबर भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि पर एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों बुद्धिजीवियों एवं छात्र छात्राओं ने भाग लिया । इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 94 वर्ष पूर्व 17 नवम्बर 1928 भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का निधन हुआ था। उनका सारा जीवन सामाजिक उत्थान एवं देश की स्वाधीनता के लिए समर्पित रहा। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक एवं लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। सन् 1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये और अन्ततः 17 नवम्बर सन् 1928 को भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की महान आत्मा ने देह त्याग दी।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि 28 जनवरी 1865 को एक अग्रवाल परिवार में हुआ था। इन्होंने हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे। बाल गंगाधर तिलक एवं बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था। इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी। बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया।
इन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। लाला हंसराज एवं कल्याण चन्द्र दीक्षित के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया, लोग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जानते है। लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की थी। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि
30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये। उस समय इन्होंने कहा था: “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।” और वही हुआ भी; लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही 15 अगस्त 1947को ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया।