प्लॉस्टिक आज पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा है
सुनील कुमार महला
पॉलीथीन और प्लॉस्टिक आज पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आधुनिक युग में प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाले कचरे की मात्रा को बढ़ा रहा है, जिससे इसका निस्तारण दिन-प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है, क्योंकि प्लास्टिक एक नॉन बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है। यह कई टुकड़ो में टूट जाता है और खराब होता है परन्तु मिट्टी में नहीं मिलता है, जिससे यह पर्यावरण में सैकड़ों सालों तक बना रहता है और प्रदूषण फैलाता है। पॉलिथीन बैग भूमि, वायु, समुद्र और जल संसाधनों को समान रूप से प्रदूषित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर मिनट 10 लाख से ज्यादा पॉलिथीन बैग की खपत होती है। प्लास्टिक को वास्तव में, तेल और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधन से प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग बड़े रुप से प्लास्टिक बैग, रसोई का सामान, फर्नीचर, दरवाजे, चद्दर, पैकिंग के सामान के अलावा अन्य कई चीजों को बनाने में किया जाता है। लोग प्लास्टिक से बने सामानों को लेना अधिक पसंद इसलिए करते हैं , क्योंकि यह लकड़ी और धातु की वस्तुओं की तुलना में काफी हल्के और किफायती होते हैं। पर्यावरण और मानव के लिए आज अगर सबसे बड़ा खतरा है तो वह पॉलीथीन बैग्स और प्लॉस्टिक से ही है। अनेक देशों में इनके खतरों को लेकर मानवजाति को आगाह किया जाता रहा है लेकिन बावजूद इसके भी इनका प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है।
कुछ देशों ने इनके खतरों को देखते हुए मानवहित व पर्यावरण हित में कड़े फैसले लिए हैं। वर्ष 2002 में बांग्लादेश पतले पॉलीथीन बैग के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश बना। बताता चलूँ कि हमारे देश में जम्मू-कश्मीर एक ऐसा राज्य है, जहां पतले पॉलीथीन बैग (मोटाई में 50 माइक्रोन से कम) के उत्पादन और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध है। साठ के दशक से पहले पॉलीथिन बैग नहीं था। क्या इसका मतलब यह है कि पैकेजिंग सामग्री के निर्माताओं के लिए इससे पहले कोई व्यावसायिक अवसर नहीं थे ? क्या इससे पहले पैकेजिंग उद्योग नहीं चल रहा था? तो इन प्रश्नों का उत्तर है पैकेजिंग सामग्री के निर्माताओं के लिए भी व्यावसायिक अवसर मौजूद थे और पैकेजिंग उधोग भी चल रहा था। मानव ने तो अपनी सुविधाओं मात्र के लिए प्लास्टिक व पॉलीथीन का उपयोग बढ़ाया। आज दिन की शुरूआत से लेकर रात में बिस्तर में जाने तक अगर ध्यान से गौर किया जाए तो हम यह पाएंगे कि प्लास्टिक और पॉलीथीन दोनों ही ने किसी न किसी रूप में हमारे हर पल पर कब्जा कर रखा है।आज बाजार में जहाँ देखो पॉलीथिन बैग्स का धड़ल्ले से उपयोग होता देखा जा सकता है। किरयाने की दुकानें हों या सब्जी मार्केट, दैनिक गतिविधियों में सभी स्थानों पर पॉलीथीन बैग्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। पॉलीथीन बैग्स समुद्री प्रजातियों, वन्यजीवों और यहां तक कि कुछ मामलों में पक्षियों तक के लिए भी हानिकारक माना गया हैं। पशुओं द्वारा पॉलीथीन बैग्स को भूख के मारे निगल लेने की घटनाएं आम हैं। अनेक पशु केवल पॉलीथीन बैग्स को निगल लेने के कारण असमय मारे जाते हैं और इनमें अधिकतर गायें हैं। पॉलीथीन के साथ ही हमें प्लास्टिक के खतरों के बारे में भी ध्यान रखना चाहिए कि जब प्लास्टिक बनाया जाता है तो उसमें बहुत सारे घातक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। जब उसे जलाया जाता है तो ये सारे रसायन हवा में फैल जाते हैं और वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं।
इसके अलावा, पॉलीथीन के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके बने बैग गैर-अपघट्य होते हैं और इसलिए मिट्टी में विघटित नहीं होते हैं। पॉलीथीन सैकड़ों हजारों सालों तक भी गलता नहीं है, मतलब विघटित नहीं होता है। आज विश्व में कई देश पॉलीथिन के खतरों को देखते हुए पहले ही पॉलीथिन बैग के इस्तेमाल पर रोक लगा चुके हैं। बांग्लादेश और भारत इनमें प्रमुख हैं। पाकिस्तान में भी, कुछ साल पहले, सरकार ने 30 माइक्रोन की न्यूनतम मोटाई के प्लास्टिक बैग के उपयोग के लिए निर्देश जारी किए थे, फिर भी न्यूनतम आवश्यकता से कम मोटाई के प्लास्टिक बैग अभी भी विशेष रूप से सड़क विक्रेताओं द्वारा व्यापक रूप से पाकिस्तान में धड़ल्ले से उपयोग किए जा रहे हैं।पॉलिथीन और प्लास्टिक गाँव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है। इसके चलते नालियाँ और नाले जाम हो जाते हैं और गंदा पानी गलियों में बिखर जाता है। आधुनिक युग में तो पॉलीथीन का प्रयोग अत्यधिक तेजी से बढ़ा है।
प्लास्टिक के गिलासों में चाय या फिर गर्म दूध का सेवन करने से उसका केमिकल लोगों के पेट में चला जाता है। इससे डायरिया के साथ ही कैंसर जैसी अत्यंत खतरनाक व गम्भीर बीमारियाँ होती हैं। विवाह शादियों, पार्टियों, विभिन्न फंक्शन्स में आज पॉलीथिन, प्लास्टिक का जमकर प्रयोग किया जाता है। आजकल डिस्पोजेबल प्रॉडक्ट्स का खूब इस्तेमाल होता है लेकिन उपयोग करके यें फेंकने लायक उत्पाद (डिस्पोजेबल प्रॉडक्ट्स) धरती के पारिस्थितिकीय तंत्र को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं और इससे धरती की सेहत लगातार बिगड़ती चली जा रही है। पॉलिथीन का बढ़ता हुआ उपयोग न केवल वर्तमान के लिये बल्कि भविष्य के लिये भी खतरनाक होता जा रहा है। पॉलिथीन आज पूरे देश की गम्भीर समस्या बनकर सामने आई है। पहले के जमाने में जब हम खरीदारी करने जाते थे तो कपड़े या जूट का थैला साथ लेकर जाते थे, किन्तु आज खाली हाथ जाकर दुकानदार से पॉलिथीन माँगकर बाजार से सामान लाते हैं। पहले अखबार के लिफाफों का उपयोग किया जाता था, किन्तु आज उसके स्थान पर पॉलिथीन बैग्स का उपयोग किया जा रहा है। छोटी से छोटी चीज के लिए दुकानदार से आज पॉलीथिन बैग्स की मांग उपभोक्ताओं द्वारा की जाती है। हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि पृथ्वी तल पर जमा पॉलिथीन जमीन के जल सोखने की क्षमता को लगातार खत्म कर रही है। इससे भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। भूजल लगातार प्रदूषित भी हो रहा है, क्योंकि पॉलीथिन अपना प्रभाव छोड़े बिन नहीं रहता है। सुविधा के लिये बनाई गई पॉलिथीन आज सबसे बड़ी असुविधा का कारण बन गई है। आज बड़े बड़ें शहरों में पॉलीथीन की थैलियों के अनगिनत बड़े बड़े ढ़ेर देखे जा सकते हैं। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकात्ता जैसे महानगरों में तो पॉलीथीन के कारण बहुत बुरा हाल है। यहाँ गंदे नालों, सिवरेज, नालियों, बहते पानी में आपको हर कहीं पॉलीथीन बहता नजर आयेगा। लोग अपनी सुविधाओं को देखते हैं, कभी भी स्वयं व धरती के स्वास्थ्य की चिंता नहीं करते। प्राकृतिक तरीके से नष्ट न होने के कारण पॉलीथीन व प्लास्टिक धरती की उर्वरक क्षमता को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है। विकास के नाम पर शहरों में पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई हुई है।
तरह-तरह के निर्माण के दौरान भी पेड़ काटे गए। रोड चौड़ीकरण के दौरान भी सैकड़ों हजारों पेड़ कुर्बान हो गए, पर उतने या उससे ज्यादा पेड़ वापस नहीं लगाए गए। आज हर तरफ कंक्रीट की दीवारों को खड़ा कर दिया गया है और इन कंक्रीट की दीवारों में बैठकर हम मानव पॉलीथीन बैग्स का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। हमें धरती के स्वास्थ्य की रत्तीभर भी चिंता या फिक्र नहीं है। यही कारण है कि आज प्लास्टिक का प्रयोग हमारे जीवन में सर्वाधिक होने लगा है। रसोई घर की हरेक चीज आज पॉलीथीन बैग्स में पैक होकर ही हमारे घर में प्रवेश करती है।इसका प्रयोग हमारे स्वास्थ्य व धरती के स्वास्थय के लिए अत्यंत नुकसानदायक है और यह जानते हुए भी हम धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। आज हम बाजार जाते समय जूट का कपड़े का थैला ले जाना उचित नहीं समझते,क्योंकि हमें इसमें शर्म महसूस होती है। कपड़े व थूट, काग़ज़ के थैलों को घसीटने का झंझट कौन करे ? यदि इसके प्रयोग पर रोक लगे तो कुछ बात बने। प्लास्टिक को जलाने से भी नुकसान होगा। इसका जहरीला धुआँ स्वास्थ्य के लिये खतरनाक है। पॉलीथीन के जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य जहरीली गैसें निकलती हैं जो कि कैंसर समेत अनेक गंभीर रोगों का प्रमुख कारण हैं। यह अत्यंत गंभीर है कि आज पॉलिथीन की पन्नियों में लोग कूड़ा भरकर फेंकते हैं। कूड़े के ढेर में खाद्य पदार्थ खोजते हुए पशु इन पन्नी या पॉलीथीन बैग्स को निगल जाते हैं। ऐसे में पन्नी उनके पेट में चली जाती है। बाद में ये पशु बीमार होकर दम तोड़ देते हैं। प्लास्टिक और पॉलिथीन गाँव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। पहले के जमाने में गांवों में पॉलीथीन का उपयोग शहरों की अपेक्षा कम था लेकिन आज गांव भी शहरों की तर्ज पर चल पड़े हैं। आज शहर का ही नहीं बल्कि गांवों का भी ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से अटा पड़ा मिलता है। इसके चलते नालियाँ और नाले जाम हो जाते हैं। समय के साथ इसका प्रयोग अत्यंत तेजी से बढ़ा है। वास्तव में, प्लास्टिक और पॉलिथीन का प्रयोग पर्यावरण और मानव की सेहत दोनों के लिये खतरनाक है। कभी न नष्ट होने वाली पॉलिथीन भूजल स्तर को लगातार प्रभावित कर रही है।
पॉलीथीन जमीन के अंदर एक परत का निर्माण कर देती है जिससे वाटर रिचार्ज भी नहीं हो पाता है। नीचे की जमीन लगातार बंजर होती चली जाती है। वहीं धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। पॉलीथिन उत्सर्जित हानिकारक रसायन मिट्टी एवं पानी को प्रदूषित करता है जिनसे फसलों पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। बताता चलूँ कि प्लास्टिक के इस्तेमाल से सीसा, कैडमियम और पारा जैसे रसायन सीधे मानव शरीर के संपर्क में आते हैं। ये जहरीले पदार्थ कैंसर, जन्मजात विकलांगता, इम्यून सिस्टम और बचपन में बच्चों के विकास को प्रभावित कर सकते है। आज देखा जा सकता है कि कुछ लोग अपनी दुकानों पर चाय प्लास्टिक की पन्नियों में मँगा रहे हैं। गर्म चाय पन्नी में डालने से पन्नी का केमिकल चाय में चला जाता है, जो बाद में लोगों के शरीर में प्रवेश कर जाता है। आज रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड व शहरों में विभिन्न स्थानों पर पॉलीथीन बैग्स, कपस्,कटोरी आदि में चाय,सब्जियाँ व अन्य गरम खाद्य पदार्थों को सर्व किया जाता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।आंकड़ों के अनुसार आज भारत में औसत व्यक्ति प्रतिवर्ष 11 किलो प्लास्टिक की वस्तुओं का उपयोग किया जा रहा है, जबकि विश्व में यह 28 किलो प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है। इसके बावजूद प्लास्टिक का उपयोग इसलिए चिंताजनक है, क्योंकि हमारे यहां इसके निस्तारण की सही,उचित व माकूल व्यवस्था नहीं बन सकी है। एक प्लास्टिक बैग अपने वजन से कई गुना ज्यादा वजन उठा सकता है। इसके कारण बहुत से लोग जब कुछ खरीदने जाते हैं तो कपड़े या जूट का थैला नहीं लेकर जाते। सामान बेचने वाले विक्रेता उन्हें पॉलीथिन के थैले में सामान दे देते हैं। इसके कारण ही सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बहुत बढ़ गया है। इससे ऐसे जहरीले पदार्थ निकलते हैं जो मानव स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं।प्लास्टिक आज जल प्रदूषण का बड़ा कारण बन रहा है, इसकी वजह इस पर बढ़ती हमारी निर्भरता है। जैसे पानी पीने की बोतल, प्लास्टिक के चम्मच, टूथब्रश, थाली, कप, गिलास, बैग आदि। बच्चों के टिफिन तक आज प्लॉस्टिक के हो गए हैं, जो अत्यंत चिंतनीय विषय है।एक समय था जब इनमें से अनेक वस्तुएं प्लास्टिक की नहीं होती थीं।
मिट्टी के बरतनों अथवा स्टील के बरतनों का प्रचलन अधिक था। आज प्लास्टिक के बरतनों का उपयोग हो रहा है।दरअसल सहूलियत के कारण प्लास्टिक का अधिक उपयोग बढ़ा है। आज तमाम वस्तुओं की पैकिंग के लिए भी प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। यहां तक कि बच्चों के खेलने के लिए भी प्लास्टिक के खिलौने बनाए जाने लगे हैं। चिकित्सक प्लास्टिक के गिलासों और पॉलिथीन में गरम पेय पदार्थों का सेवन न करने की सलाह देते हैं, क्यों कि ये कैंसर, विभिन्न चर्म रोगों के कारक हैं। आज पॉलिथीन पर प्रतिबन्ध है, बावजूद इसके दुकानदार चोरी-छिपे पॉलिथीन का प्रयोग करते पाये जाते हैं। सब्जियां खरीदने के लिए पॉलीथीन का प्रयोग आम देखने को मिल जायेगा।ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों नहीं सफल होता है पॉलिथीन पर प्रतिबन्ध ? कारण क्या है कि हम पॉलीथीन पर पूर्णतया प्रतिबंध नहीं लगा पा रहे हैं ? क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि पॉलीथीन का निर्माण करना ही बंद कर दिया जाये ताकि प्रदूषण फैलने की नौबत ही न आने पाये ? हमारी ऐसी क्या मजबूरी है कि हम इसका निर्माण नहीं रोक सकते हैं ? पर्यावरण एवं स्वास्थ्य दोनों के लिये नुकसानदायक 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलिथीन पर्यावरण की दृष्टि से बेहद नुकसानदायक होती है। चूँकि ये पॉलिथीन उपयोग में काफी सस्ती पड़ती हैं, इसलिए इनका उपयोग भी धड़ल्ले से किया जाता है। लेकिन इन्हें एक बार उपयोग करने के बाद कूड़े में फेंक दिया जाता है, जबकि इससे अच्छे किस्म की खाद तक बनाई जा सकती है तथा अन्य काम भी किये जा सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश का भी उदाहरण भी हमारे सामने है, जहाँ केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मदद से पन्नियों को चक्रित (रिसाइकिल) करके इसका सड़क निर्माण में उपयोग किया जा रहा है। जर्मनी में प्लास्टिक के कचरे से बिजली का निर्माण भी किया जा रहा है। इसके अलावा पन्नियों को चक्रित करके खाद भी बनाई जा सकती है। इसलिये यदि सरकारें इस दिशा में गम्भीर हों, तो नुकसानदायक प्लास्टिक के कचरे से लाभ भी कमाया जा सकता है। ऐसे प्रयोग को व्यापक बनाया जा सकता है। यह अत्यंत गंभीर है कि प्लास्टिक की वस्तुएं हजारों वर्षों तक समुद्र में पड़ी रहती हैं। इनसे धीरे-धीरे जहरीले पदार्थ निकलते हैं, जो जल को प्रदूषित करते रहते हैं। कई बार समुद्री जीव प्लास्टिक को खाना समझकर खा लेते हैं। इसके कारण उनके फेफड़ों या फिर श्वास नली में यह प्लास्टिक फंस जाता है और उनकी मृत्यु हो जाती है। यूनेस्को के अनुसार दुनिया में प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से लगभग 10 करोड़ समुद्री जीव-जंतु प्रति वर्ष मर रहे हैं। हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए किप्लास्टिक की विघटन प्रक्रिया में 400 से ज्यादा साल लग जाते हैं। इस दौरान वे जहरीली गैसें छोड़ते रहते हैं, जिसके कारण भूमि बंजर हो जाती है। प्लास्टिक के कचरे को सही तरह निस्तारित करने के बजाय कई लोग उसे जला देते हैं। लोग समझते हैं कि जलाने से उसे नष्ट किया जा सकता है और प्रदूषण से भी बचा जा सकता है, लेकिन होता बिल्कुल उलट है। जलाने से कभी भी प्लॉस्टिक व पॉलीथीन खत्म नहीं होता है अपितु उसका खतरा पहले की तुलना में और अधिक बढ़ जाता है।कुल मिलाकर पॉलिथीन व प्लॉस्टिक मनुष्य एवं सभी जीव-जन्तुओं के लिये बहुत हानिकारक है। इसकी रोकथाम से ही इससे निजात पाई जा सकती है। आज समाज के हर व्यक्ति को पॉलिथीन व प्लॉस्टिक के उपयोग से बचना चाहिए तभी हम इस समस्या से छुटकारा पा सकेंगे। आज विश्व के अनेक विकसित व विकासशील देश ऐसे प्लास्टिक की खोज के प्रयासों को लगातार बढ़ावा दे रहे हैं जिसका क्षरण जल्द हो जाए और जो इस प्रक्रिया में जल, जमीन या हवा को नुकसान न पहुंचाए।
जब तक ऐसा प्लास्टिक हमारे वैज्ञानिकों को नहीं मिलता है तब तक हमें यह चाहिए कि हम सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करके हमारी धरती के पारिस्थितिकीय तंत्र व पर्यावरण की रक्षा करने में मददगार बनें। पॉलीथिन से होने वाली समस्याओं को देखते हुए हमें चाहिए कि हम नॉन वोवन बैग तैयार करने शुरू करें।
प्लास्टिक की जगह नॉन वोवन कैरी बैग पॉलीथिन का सब्स्टीट्यूट है। यह गल भी जाता है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता। आज हमें प्लास्टिक के उपयोग से होने वाली समस्याओं पर गंभीरता से विचार के साथ तत्काल रुप से इनका उपयोग बंद करने की तत्काल प्रभाव से आवश्यकता है। हालांकि इस विषय को लेकर कुछ राज्यों द्वारा सकारात्मक पहल की गयी है और प्लास्टिक बैगों को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है, परन्तु यह वह समय है जब हमारे देश के विभिन्न राज्य सरकारों को एक साथ मिलकर इस मामले पर सख्त रवैया व कड़े से कड़े कानूनों का प्रावधान करते हुए प्लास्टिक बैगों को पूर्णतः प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है। हमें चाहिए कि हम स्वस्थ समाज व स्वस्थ पर्यावरण की दिशा में आगे बढ़ें और संपूर्ण पर्यावरण की प्लॉस्टिक व पॉलीथीन से रक्षा करें।